कामदा एकादशी के दिन इस कथा को सुनने से मिलती है पापों से मुक्ति
इस दिन व्रत रहने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। साथ ही अच्छे फल प्राप्त होते है। इस एकादशी के बारें में कहा जाता है कि यह एकादशी व्यक्ति के पापों को समाप्त कर देती है। साथ ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
धर्म डेस्क: कामदा एकादशी व्रत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी के रुप में मनाया जाता है। सास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन व्रत रहने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। साथ ही अच्छे फल प्राप्त होते है। इस एकादशी के बारें में कहा जाता है कि यह एकादशी व्यक्ति के पापों को समाप्त कर देती है। साथ ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
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माना जाता है कि इस दिन कामदा एकादशी की कथा सुनना मोक्ष के दर्शन करान के बराबर होता है। जानिए इस कथा के बारें में। इस एकादशी की कथा श्री कृष्ण ने पाण्डु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी। इससे पूर्व राजा दिलीप को वशिष्ठ मुनि ने सुनाई थी।
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि नमस्कार करता हूं। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का महात्म्य कहिए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! यही प्रश्न एक समय राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जो समाधान उन्होंने किया वो सब मैं तुमसे कहता हूं।
प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहां पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गंधर्व वास करते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था, यहां तक कि अलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे।
एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था। गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया। तब पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है। अत: तू कच्चा मांस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए कर्म का फल भोग।
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