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उत्पन्ना एकादशी का जानें महत्व, कथा और पूजा विधि के बारें में

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष स्थान है। हर साल 24 एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब यह 26 हो जाती है। मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी व्रत किया जाता है।

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नई दिल्ली: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष स्थान है। हर साल 24 एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब यह 26 हो जाती है। मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी व्रत किया जाता है। इस बार उत्पन्ना एकादशी 7 दिसंबर, सोमवार को है।

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इस व्रत के के फल से व्यक्ति को मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार माना जाता है कि मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी के दिन देवी एकादशी का जन्म हुआ था। जिन्होंने मुर नामक दैत्य का वध कर देवताओं सहित भगवान विष्णु की रक्षा की थी।

ऐसे करें पूजा-

पद्म पुराण के अनुसार माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु सहित देवी एकादशी की पूजा का विधान है। इसके अनुसार मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की दशमी को भोजन के बाद अच्छी तरह से दातून करना चाहिए ताकि अन्न का एक भी अंश मुंह में न रह जाए। इसके बाद दूसरे दिन यानी कि उत्पन्ना एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प करके स्नान करना चाहिए।

इसके बाद भगवान श्री कृष्ण की पूजा विधि-विधान से करनी चाहिए। इसके लिए धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह सामग्री से पूजा करें और रात के समय दीपदान करना चाहिए। इस दिन सारी रात जगकर भगवान का भजन- कीर्तन करना चाहिए। साथ ही श्री हरि विष्णु से अनजाने में हुई भूल या पाप के लिए क्षमा भी मांगनी चाहिए। उत्पन्ना एकादशी के दूसरे दिन सुबह स्नान कर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा कर ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।

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