नई दिल्ली: प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है। यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को पडने वाला प्रदोष व्रत इस बार 23 नवंबर, सोमवार को है।
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शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत सोमवार के दिन पड़ने के कारण इसका महत्व और अधिक बढ गया है, क्योंकि इस दिन भगवान शिव का दिन यानी कि सोमवार भी है।
सोम प्रदोष व्रत का योग बना है। जिसके कारण इस व्रत का महत्व और अधिक बढ़ गया है। जानिए इसकी पूजा विधि के बारें में।
ज्योतिषों के अनुसार प्रदोष व्रत के दिन प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत हो। इस दिन निर्जला व्रत रहा जाता है। इसके बाद नंदी जी गणपति, कुमार कार्तिकेय, माता गौरा की पूजा और नाग पूजन करें। इसके बाद घी का दीपक जलाकर पंचामृत यानी कि कच्चा दूध, दही, शहद, देसी घी और शक्कर से शिवाभिषेक करें|
इसके बाद भगवान शिव को बिल्व पत्र, गंध, चावल, फूल, धूप, दीप, भोग, फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची चढ़ाएं। दिन भर भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें। इन मंत्रों में आप महामृत्युजंय के मंत्र का जाप भी कर सकती है।
ऊं त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम |
उर्वारुकमिव बन्धनात मृत्युर्मुक्षीय माम्रतात ||
शाम को फिर से स्नान कर शिवजी का षोडशोपचार पूजा करें। भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं।
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