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देवप्रबोधनी एकादशी में होता है तुलसी विवाह, जानिए इसका महत्व और पूजा विधि

हिंदू धर्म में इस अवसर पर भक्तगण घर की साफ-सफाई करते है और आंगन में रंगोली सजाते है। यही पर शाम के समय तुलसी के मंडप के पास गन्ने से भव्य मंडप बनाया जाता है। इसमें साक्षात् के रुप में विष्णु को शालिग्राम के रुप में मूर्ति रखते है और दोनो का विधि-विधा

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धर्म डेस्क: देवोत्थान एकादशी या देव प्रबोधनी के दिन मनाया जाने वाला तुलसी विवाह विशुद्ध मांगलिक और आध्यात्मिक होता है। देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। इसीलिए तुलसी विवाह को देव जागरण के पवित्र मुहूर्त के स्वागत का आयोजन माना जाता है। इस बार देव प्रबोधनी 10 नवंबर, गुरुवार को है।

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हिंदू धर्म में इस अवसर पर भक्तगण घर की साफ-सफाई करते है और आंगन में रंगोली सजाते है। यही पर शाम के समय तुलसी के मंडप के पास गन्ने से भव्य मंडप बनाया जाता है। इसमें साक्षात् के रुप में विष्णु को शालिग्राम के रुप में मूर्ति रखते है और दोनो का विधि-विधान के साथ विवाह किया जाता है।

ऐसे करें तुलसी विवाह
शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं। इसके बाद तुलसी का पौधा एक पटिये पर आंगनपूजा घर पर बिल्कुल बीच में रखें। इसके बाद तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं। इसके बाद माता तुलसी पर सुहाग की चीजें जैसे कि लाल चुनरी, बिंदी, बिछिया आदि चढ़ाएं।

इसके बाद विष्णु स्वरुप शालिग्राम को रखें और उन पर तिल चढाएं, क्योंकि शालिग्राम में चावल नही चढाएं जाते है। इसके बाद तुलसी और शालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं। साथ ही गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें। अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें। इसके बाद दोनों की घी के दीपक और कपूर से आरती करें। और प्रसाद चढाएं।

तुलसी और शालिग्राम की परिक्रमा करना बहुत ही शुभ होता है। इसलिए इनकी कम से कम 11 बार परिक्रमा करें। इसके बाद प्रसाद सभी को दें। पूजा समाप्त होने के बाद परिवार के साथ मिलकर चारों तरफ से पटिए को उठा कर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करते हुए ये बोलें-

उठो देव सांवरा, भाजी, बोर आंवला, गन्ना की झोपड़ी में, शंकर जी की यात्रा।
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भी देव को जगाया जा सकता है -
'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥'
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'

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