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शरद पूर्णिमा का शास्त्रों में महत्व और पूजा विधि, कथा

नई दिल्ली: शरद पूर्णिंमा का व्रत संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए किया जाता है। कही-कही पर इसे कोजागर व्रत के नाम से जाना जाता है। जिसका अर्थ है कि कौन जग

इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। शाम के समय चन्द्रोदय होने पर चांदी, सोने या मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए। इस दिन घी और चीनी से बनी खीर चन्द्रमा की चांदनी में रखनी चाहिए। जब रात्रि का एक पहर बीत जाए तो यह भोग लक्ष्मी जी को अर्पित कर देना चाहिए।
शरद पूर्णिमा को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में सोकर उठें। इसके बाद नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करें। साफ कड़े पहनें।

अपने आराध्य देव को स्नान कराकर उन्हें सफेद रंग के सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करें। एक चौकी में एक लोटे में जव भर कर रखें और इलके ऊपर एक कटोरी रखें। फिर लोटे में आटे और हल्दी ले लेप करके स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। इसके बाद पूजा शुरू करें। इसके लिए अंब, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से अपने आराध्य देव का पूजन करें।

इसके साथ ही गाय के दूध से बनी खीर में घी तथा चीनी मिलाकर पूरियां बनाएं और अर्द्धरात्रि के समय भगवान का भोग लगाएं। इसके बाद कथा सुनें।

व्रत सुनने से लिए एक लोटे में जल तथा गिलास में गेहूं, पत्ते के दोने में रोली तथा चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाएं। फिर तिलक करने के बाद गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें। इसके बाद  गेहूं के गिलास पर हाथ फेरकर मिश्राणी के पांव का स्पर्श करके गेहूं का गिलास उन्हें दे दें। साथ ही जो लोटे में जल है उसे रात में चंद्रमा को अर्घ्य दें। इसके बाद खीर का भोग लगाकर चांड की रोशनी में रख दें और दूसरें दिन इस खीर को प्रसाद के रूप में खाएं।

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