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शरद पूर्णिमा का शास्त्रों में महत्व और पूजा विधि, कथा

नई दिल्ली: शरद पूर्णिंमा का व्रत संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए किया जाता है। कही-कही पर इसे कोजागर व्रत के नाम से जाना जाता है। जिसका अर्थ है कि कौन जग

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नई दिल्ली: शरद पूर्णिंमा का व्रत संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए किया जाता है। कही-कही पर इसे कोजागर व्रत के नाम से जाना जाता है। जिसका अर्थ है कि कौन जग रहा है। पुराणों के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था । जिसके उत्सव आज के दिन मनाते है। इस साल शरद पूर्णिमा 26 अक्टूबर को है।

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साथ ही माना जाता है कि इस दिन माता लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू में सवार होकर धरती में आती है। माता यह देखती है उनका कौन भक्त रात में जागकर उनकी भक्ति कर रहा है। माना जाता है जो भक्त इस रात में जागकर मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं मां लक्ष्मी की उन पर अवश्य ही कृपा होती है।

ज्योतिषियों की मानें तो इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा सच्चें मन और श्रृद्धा के साथ करने से सभी मनोकामनाएं, धन की प्राप्ति होती है। यदि उसकी कुण्डली में धन योग नहीं भी हो तब भी माता उन्हें धन-धान्य से अवश्य ही संपन्न कर देती हैं। उसके जीवन से निर्धनता का नाश होता है, इसलिए धन की इच्छा रखने वाले हर व्यक्ति को इस दिन रात को जाग कर जरुर माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। जानिए पूजा विधि और कथा। 

ऐसे करें पूजा

नारदपुराण के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी अपने हाथों में वर और अभय लिए घूमती हैं। इस दिन वह अपने जागते हुए भक्तों को धन-वैभव का आशीष देती हैं।

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