सितंबर 2020 में कई महत्वपूर्ण व्रत-त्योहार पड़ रहे हैं। जहां इस माह की शुरुआत अनंत चतुर्दशी के साथ साथ-साथ पितृ पक्ष के साथ हो रही हैं वहीं समाप्ति प्रदोष व्रत के साथ हो रही हैं। जानिए हिंदू पंचांग के अनुसार सिंतबर माह में पड़ने वाले व्रत-त्योहारों के बारे में।
अनंत चतुर्दशी
1 सितंबर को भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी यानि अनन्त चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनन्त स्वरूप की पूजा की जायेगी। दरअसल भगवान विष्णु के 12 नाम में से एक अनन्त है और इस दिन मध्याह्न के समय इनकी पूजा और व्रत करने का विधान है।
Pitru Paksha 2020: 1 सितंबर से पितृ पक्ष हो रहे हैं शुरू, जानें श्राद्ध की तिथियां और महत्व
भाद्रपद पूर्णिमा व्रत (2 सितंबर)
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि पूर्णिमा तिथि के नाम से जाना जाता है। इसे श्राद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के सत्यनारायण रूप की पूजा की जाती है।
संकष्टि चतुर्थी (5 सितंबर)
इस दिन गणपति बप्पा की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती हैं। जिससे भगवान गणेश हर संकट को हर लेते हैं।
Pitru Paksha 2020: जानें कौन-कौन लोग कर सकते हैं श्राद्ध
जीवित्पुत्रिका व्रत 10 सितंबर
जिउतिया अथवा जीवित पुत्रिका (जीमूत वाहन) का व्रत 10 सितंबर को रख जाएगा। आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को पड़ने वाले इस व्रत में महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। यह व्रत वंश वृद्धि और संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाता है।
मासिक शिवरात्रि, प्रदोष व्रत (13 सितंबर)
इस दिन भोले भंडारी भगवान शिव की पूजा-उपासना की जायेगी। मास शिवरात्रि व्रत भगवान शिव के लिए निमित्त है और यह हर माह के कृष्ण पक्ष में प्रदोष व्रत के बाद किया जाता है।
अमावस्या श्राद्ध (पितृ पक्ष समाप्त) (16 सितंबर)
आश्विन माह की कृष्ण अमावस्या को सर्वपितृ मोक्ष श्राद्ध अमावस्या कहते हैं। इस दिन को पितृपक्ष का आखिरी दिन माना3 जाता है। अगर पित-पक्ष में श्राद्ध कर चुके हैं तो भी सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करना जरूरी माना जाता है। इसके साथ ही 13 सिंतबर को कन्या संक्रान्ति, विश्वकर्मा जयंती भी पड़ रही है।
आश्विन अमावस्या (17 सिंतबर)
आश्विन अमावस्या विशेष रूप से शुभ फलदायी मानी जाती है। पितृ अमावस्या होने के कारण इसे पितृ विसर्जनी अमावस्या या महालया के नाम से भी जाना जाता है।
पद्मिनी एकादशी (27 सितंबर)
अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पद्मिनी एकादशी कहलाती है। यह एकादशी हर साल नहीं बल्कि एक अधिकमास के साथ ही आती है।
प्रदोष व्रत (29 सितंबर )
किसी भी प्रदोष व्रत में प्रदोष काल का बहुत महत्व होता है। त्रयोदशी तिथि में रात्रि के प्रथम प्रहर, यानि दिन छिपने के बाद शाम के समय को प्रदोष काल कहते हैं।
Latest Lifestyle News