सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती 2018: लौह पुरुष के पुण्यतिथि पर पढ़िए उनके अनमोल विचार
सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती 2018: भारत के लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल की आज पूरा देश और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ खास अंदाज में 143वीं पुण्यतिथि कुछ खास अंदाज में गुजरात में मनाया।
नई दिल्ली: सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती 2018: भारत के लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल की आज पूरा देश और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ खास अंदाज में 143वीं पुण्यतिथि कुछ खास अंदाज में गुजरात में मनाया। आज से 143 साल पहले आज के दिन यानि 31 अक्टूबर 1875 को वल्लभभाई पटेल ने जन्म लिया था। सरदार पटेल को एक खास वजह से भी पूरा भारत हमेशा याद रखेगा वह है आजादी के वक्त पटेल ने 562 राजवाड़ों को आजाद भारत कि तरह शामिल कर लिया था। सरदार वल्लभाई पटेल जयंती 2018 के खास अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की 182 लंबी स्टैचू को 'स्टैचू ऑफ यूनिटी' का नाम दिया है। सरदार वल्लभभाई 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ था। सरदार पटेल ने देश की आजादी में बेहद खास योगदान दिया था. पटेल पेशे से वकील थे। भारत को एक राष्ट्र बनाने में वल्लभ भाई पटेल की खास भूमिका है। सरदार पटेल के विचार आज भी देश के लाखों युवाओं को प्रेरणा देते हैं। आज सरदार पटेल की जयंती के मौके पर हम आपको पटेल के अनमोल विचारों के बारें में बताने जा रहे हैं।
"इस मिट्टी में कुछ अनूठा है, जो कई बाधाओं के बावजूद हमेशा महान आत्माओं का निवास रहा है।"
"आज हमें ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, जाति-पंथ के भेदभावों को समाप्त कर देना चाहिए।"
"शक्ति के अभाव में विश्वास व्यर्थ है। विश्वास और शक्ति, दोनों किसी महान काम को करने के लिए आवश्यक हैं।"
"मनुष्य को ठंडा रहना चाहिए, क्रोध नहीं करना चाहिए. लोहा भले ही गर्म हो जाए, हथौड़े को तो ठंडा ही रहना चाहिए अन्यथा वह स्वयं अपना हत्था जला डालेगा। कोई भी राज्य प्रजा पर कितना ही गर्म क्यों न हो जाये, अंत में तो उसे ठंडा होना ही पड़ेगा।
"आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आँखों को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का सामना मजबूत हाथों से कीजिये।"
"अधिकार मनुष्य को तब तक अंधा बनाये रखेंगे, जब तक मनुष्य उस अधिकार को प्राप्त करने हेतु मूल्य न चुका दे।"
"आपको अपना अपमान सहने की कला आनी चाहिए।"
मेरी एक ही इच्छा है कि भारत एक अच्छा उत्पादक हो और इस देश में कोई अन्न के लिए आंसू बहाता हुआ भूखा ना रहे।”
जब जनता एक हो जाती है, तब उसके सामने क्रूर से क्रूर शासन भी नहीं टिक सकता। अतः जात-पांत के ऊँच-नीच के भेदभाव को भुलाकर सब एक हो जाइए”
संस्कृति समझ-बूझकर शांति पर रची गयी है। मरना होगा तो वे अपने पापों से मरेंगे। जो काम प्रेम, शांति से होता है, वह वैर-भाव से नहीं होता।