भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। सभी के दुखों को हरने और सारी मनोकामनाओं को पूरा करने वाली संकष्टी चतुर्थी इस बार 3 दिसंबर को है। इस दिन प्रथम पूज्य गणपति जी की आराधना की जाती है। संकष्टी चतुर्थी हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को होती है। संकष्टी चतुर्थी को कुछ लोग गणाधिप संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं। मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से आर्थिक संकट दूर हो जाता है और सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। जो भी श्रद्धालु ये व्रत रखता है वो चंद्रोदय के बाद ही भोजन करता है। इस बार चतुर्थी के दिन सर्वाथसिद्धि योग बन रहा है। जो कि बहुत शुभ है। जानिए संकष्टी चतुर्थी का महत्व, भगवान गणेश की पूजा करने की विधि, पूजा का समय, चंद्रोदय का समय और संध्या पूजा का समय।
संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रमा के दर्शन का महत्व
इस बार संकष्टी चतुर्थी का व्रत 3 दिसंबर को है। ये व्रत सूर्योदय के साथ ही शुरू हो जाएगा। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक ये व्रत रात में चंद्रमा के दर्शन के साथ पूरा होगा और दिनभर व्रत रखना होगा। रात में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद गणेश जी की आराधना करनी होगी और उन्हें गुड़, लड्डू, दुर्वा, चंदन और मीठा अर्पित करना होगा।
संकष्टी चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त
सर्वार्थ सिद्धि योग - दोपहर 12 बजकर 22 मिनट से लेकर 4 दिसंबर को सुबह 6 बजकर 59 मिनट तक
चंद्रोदय का समय - शाम 7 बजकर 51 मिनट
संध्या पूजा - शाम 5 बजकर 24 मिनट से शाम 6 बजकर 45 मिनट तक
संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि
- सुबह उठकर सबसे पहले स्नान करें और साफ कपड़े पहने
- इसके बाद एक चौकी पर साफ पीले रंग का कपड़ा बिछाएं
- इस कपड़े के ऊपर भगवान गणेश की मूर्ति रखें
- अब गंगा जल छिड़कें और पूरे स्थान को पवित्र करें
- गणपति भगवान के सामने धूप-दीप और अगरबत्ती जलाएं
- इसके बाद पीले फूल अर्पित करें
- भगवान गणेश को दुर्वा बहुत पसंद है वो भी उन्हें चढ़ाएं
- बेसन के लड्डुओं का भोग लगाएं
- अब गणेश चालीसा और स्तुति का पाठ करें
- भगवान गणेश के नाम का जाप करें
- भगवान की आरती करें और हाथ जोड़कर उन्हें धन्यवाद कहें
- परिवार के लिए मंगलकामना करें
- अंत में चंद्रमा को अर्घ्य दें और अपने व्रत को पूर्ण करें
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