धर्म डेस्क: होली के 5 दिन बाद रंगपचंमी मनाई जाती है। इस बार 6 मार्च, मंगलवार को पूरे देश में मनाई जाएगी। इसे होली का आखिरी पर्व माना जाता है। देश में अपने-अपने तरीके से होली खेली जाती है। इसी तरह रंग पचंमी सबसे ज्यादा महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में मनाई जाने की परंपरा है। इस दिन पानी के रंगों से नहीं बल्कि गुलाल से होली खेली जाती है।
अध्यात्मिक महत्व
इस पर्व को लेकर अध्यात्मिक मान्यता है कि इस दिन उड़ते गुलाल से वातावरण सही होता है। साथ ही सात्विक गुणों में वृद्धि होती है। इसके साथ ही बुरी शक्तियों का नाश होता है।
जानिए क्या है रंगपंचमी
फाल्गुन पूर्णिमा से लेकर चैत्र मास की कृष्ण प्रतिपदा की पंचमी तक होली का त्योहार चलता है। इस आखिरी दिन को रंग पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि जो भी रंग लगाया या फिर उड़ाया जाता है। उससे देवता आकर्षित होते है। जिससे वह सभी को आर्शीवाद भी देते है।
इन लोगों के लिए है खास
इस पर्व को लेकर मान्यता है कि यह पर्व मछुआरों के लिए बहुत अधिक महत्व रखता है। इस दिन सभी गुलाल के साथ नाच-गान भी करते है। इस दिन विशेष प्रकार का एक मीठा पकवान बनाया जाता है। जिसे पूरनपोली के नाम से जाना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रंग पंचमी के जरिये एक प्रकार से तेजोमय सगुण स्वरूप का रंगों के माध्यम से भी आह्वान भी किया जाता है। रंगपंचमी अनिष्टकारी शक्तियों पर विजय पाने का उत्सव भी है।
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