बहुत देर प्रतिक्षा करने के बाद ऋषियों ने श्री राम से कहा कि आप माता सीता का बनाया हुआ शिवलिंग स्थापित कर उसकी पूजा करें। इसके बाद श्री राम ने उसी शिवलिंग को स्थापित किया। जो श्री राम के नाम पर रामेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुआ। जैसे ही श्री राम ने शिवलिंग स्थापित कर दिया । वैसे ही हनुमान जी शंकर जी से शिवलिंग लेकर पहुंचे तो उन्हें दुख और आश्चर्य दोनों हुआ।
हनुमान जी जिद करने लगे कि जो वह लाएं है शिवलिंग उसी को स्थापित किया जाए। इसपर भगवान राम ने कहा की तुम पहले से स्थापित बालू का शिवलिंग हटा दो, इसके बाद तुम्हारे शिवलिंग को स्थापित कर दिया जायेगा। हनुमान जी ने अपने पूरे सामर्थ्य से शिवलिंग को हटाने का प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहे। बालू का शिवलिंग अपने स्थान से हिलने के स्थान पर, हनुमान जी ही लहूलुहान हो गए।
हनुमान जी की यह स्थिति देख कर माता सीता रोने लगी तब श्री राम ने हनुमान जी को समझाया की शिवलिंग को उसके स्थान से हटाने का जो पाप तुमने किया उसी के कारण उन्हें यह शारीरिक कष्ट झेलना पडा। यह सुन हनुमान जी ने भगवान राम से क्षमा मांगी और जिस शिवलिंग को हनुमान जी कैलाश पर्वत से लेकर आये थे। उसे उस शिवलिंग के पास ही स्थापित कर दिया गया। जिसका नाम भगवान राम ने हनुमदीश्वर रखा।
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