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Hindi News लाइफस्टाइल जीवन मंत्र Raksha Bandhan 2018: जानें आखिर क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्यौहार?, क्यों भाई को बांधी जाती है राखी

Raksha Bandhan 2018: जानें आखिर क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्यौहार?, क्यों भाई को बांधी जाती है राखी

रक्षाबंधन 2018: रक्षाबंधन आखिर क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे का क्या कारण है? कई लोगों को इसके बारें में पता होगा और कई लोगों को नहीं। हम आपको बताते है कि आखिर क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन।

Raksha bandhan- India TV Hindi Image Source : PIXABAY Raksha bandhan

धर्म डेस्क: हर साल की तरह इस साल भी रक्षाबंधन का त्योहार की तैयारियां जोरो शोरों से चल रही हैं। हिंदू धर्म में इस त्योहार का बहुत अधिक महत्व है। यह त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को दर्शाता है। इस बार रक्षाबंधन 26 अगस्त, रविवार के दिन पड़ रहा है।

रक्षाबंधन आखिर क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे का क्या कारण है? कई लोगों को इसके बारें में पता होगा और कई लोगों को नहीं। हम आपको बताते है कि आखिर क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन। (Raksha Bandhan 2018: जानिए कब है रक्षाबंधन, इस शुभ मुहूर्त में बांधे राखी)

रक्षाबंधन को लेकर कई कथाएं है। एक तो कृष्ण से संबंधित है। इसके अनुसार राजसूय यज्ञ के समय भगवान कृष्ण को द्रौपदी ने रक्षा सूत्र के रूप में अपने आंचल का टुकड़ा बांधा था। इसी के बाद से ही बहनों द्वारा भाइयों को राखी बांधने की परंपरा शुरू हुई थी। (भूलकर भी ऐसी भूमि पर न बनाएं अपने सपनों का घर, पड़ेगा भाग्य पर अशुभ फल)

जानें दूसरी मान्यता
कहा जाता है कि सबसे पहले राखी लक्ष्मी जी ने राजा बलि को बांधी थी। बताया जाता है कि यह बात उस समय कि है जब जब दानबेन्द्र राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहे थे और तब नारायण ने राजा बलि को छलने के लिये वामन अवतार लिया और तीन पग में राजा से उनका सारा राजपाट ले लिया तब राजा बलि को पाताल लोक का राज्य रहने के लिए दिया। तब राजा बलि ने प्रभु से कहा- भगवन मैं आपके आदेश का पालन करूंगा और आप जो आदेश देंगे वहीं पर रहूंगा पर आपको भी मेरी एक बात माननी पड़ेगी।

ऐसे में नारायण ने कहा- मैं अपने भक्तों की बात कभी नहीं टालता। तब बलि ने कहा- ऐसे नहीं प्रभु आप छलिया हो पहले मुझे वचन दें कि जो भी मांगूगा वो आप जरूर देंगे। तब नारायण ने कहा- दूंगा.. दूंगा.. दूंगा। अब त्रिबाचा करा लेने के बाद राजा बलि ने कहा- भगवन मैं जब सोने जाऊं तो.. जब उठूं तो.. जिधर भी मेरी नजर जाये उधर आपको ही देखा करूं।

ऐसी बात सुनकर नारायण ने कहा- तुमने सबकुछ हार के भी जीतने वाला वर मांग लिया है और अब से मैं सदैव तुम्हारे आसपास ही रहूंगा। तब से लेकर नारायण भी पाताल लोक में रहने लगे।

ऐसे होते होते काफी समय बीत गया। उधर बैकुंठ में लक्ष्मी जी को भी नारायण की चिंता होने लगी। तब लक्ष्मी जी ने नारद जी से पूछा- आप तो तीनों लोकों में घूमा करते हैं..क्या नारायण को कहीं देखा है। तब नारद जी बोले कि आजकल नारायण पाताल लोक में हैं राजा बलि की पहरेदारी कर रहे हैं। तब लक्ष्मी जी ने नारद जी मुक्ति का उपाय पूछा और तभी नारद ने राजा बलि को भाई बनाकर रक्षा का वचन लेने का मार्ग बताया।

नारद जी की सलाह मानकर लक्ष्मी जी सुन्दर स्त्री के भेष में रोते हुये पहुंची। बलि को भाई मानकर रक्षाबंधन करने का आग्रह किया। तब राजा बलि ने कहा- तुम आज से मेरी धरम की बहिन हो और मैं सदैव तुम्हारा भाई बनकर रहूंगा। तब लक्ष्मी ने तिर्बाचा कराते हुए बोली मुझे आपका ये पहरेदार चाहिये।

इस बचन को पूरा करने की बात आई तो राजा बलि बोले- धन्य हो माता, जब आपके पति आये तो बामन रूप धारण कर सब कुछ ले गये और जब आप आईं तो बहन बनकर उन्हें भी ले गयीं। यह त्यौहार मनाए जाने की ही परंपरा है।

इसीलिए जब रक्षासूत्र बांधा जाता है तो यह मंत्र पढ़ा जाता है...

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।

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