धर्म डेस्क: आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि है। हर माह के कृष्ण और शुक्ल, दोनों पक्षों की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत होता है और सप्ताह के सातों दिनों में से जिस दिन प्रदोष व्रत पड़ता है, उसी के नाम पर उस प्रदोष का नाम रखा जाता है।
आज के दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है। आज के दिन प्रातः काल में स्नान आदि के बाद सबसे पहले भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल, अक्षत और धूप-दीप आदि से पूजा की जाती है। फिर संध्या में, यानी प्रदोष काल के समय भी पुनः इसी प्रकार से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। इस प्रकार जो व्यक्ति भगवान शिव की पूजा आदि करता है और प्रदोष का व्रत रखता है, वह सभी पापकर्मों से मुक्त होकर पुण्य को प्राप्त करता है और उसे उत्तम लोक की प्राप्ति होती है। जानिए पूजा विधि और कथा के बारें में।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
आचार्य के अनुसार इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों को निपटाकर स्नान करें। इसके बाद व्रत का संकल्प लेते हुए भगवान शिव गणपति, कुमार कार्तिकेय, माता गौरा की पूजा और नाग पूजन करें। पूजा के समय घी का दीपक जलाएं।
सबसे पहले भगवान को पंचामृत से स्नान कराएं। पंचामृत में आप शहद, देसी घी, कच्चा दूध, दही, और शक्कर लेकर शिवाभिषेक करें। फिर भगवान शिव को बिल्व पत्र, सुपारी, लौंग, इलायची, फूल, धूप, गंध, चावल, दीप, पान भोग और फल चढ़ाएं। दिनभर भगवान शिव के मंत्र महामृत्युजंय के मंत्र का जाप करें।
ऊं त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम |
उर्वारुकमिव बन्धनात मृत्युर्मुक्षीय माम्रतात ||
शाम को दोबारा स्नान करके शिवजी का षोडशोपचार पूजा करें। भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। माना जाता है कि भगवान शिव को अभिषेक अत्यंत प्रिय है| पूजा के समय पवित्र भस्म से स्वयं को पहले त्रिपुंड लगाना अत्यंत शुभ होता है| साथ ही सत्तू का बना प्रसाद सभी को बांट दें।
जानिए प्रदोष व्रत की कथा
Latest Lifestyle News