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संतान प्राप्ति की है कामना, तो शनिवार को करें स्कंदमाता की पूजा

स्कंद माता का चार भुजाएं है, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कंद को गोद में पकड़े है और दाहिनी निचली भुजा में जो ऊपर की ओर उठा है उसमें कमल लिए हुए है। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। जानिए पूजा विधि के बारें में...

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इसके बाद इस मंत्र से देवी की प्रार्थना करनी चाहिए-
या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

मां की पूजा के बाद शिव शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा करनी चाहिए। ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। देवी स्कन्द माता की भक्ति-भाव सहित पूजन करते हैं उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है। देवी की कृपा से भक्त की मुराद पूरी होती है और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि रहती है। वात, पित्त, कफ जैसी बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए और माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण करना चाहिए।

संतान प्राप्ति हेतु इनकी पूजा फलदायी होती है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस अद्भुत रहस्य को समझकर मां स्कंदमाता की पूजा अर्चना करता है मां उसकी गोद हमेशा भरी रखती हैं। संतान सुख की इच्छा से जो व्यक्ति मां स्कंदमाता की आराधना करना चाहते हैं उन्हें नवरात्र की पांचवे दिन को लाल वस्त्र में सुहाग चिन्ह् सिंदूर, लाल चूड़ी, महावर, नेल पेंट, लाल बिन्दी तथा सेब और लाल फूल एवं चावल बांधकर मां की गोद भरनी चाहिए।

स्कंदमाता को प्रसन्न करना चाहते है तो पहले उवके पुत्र स्कंद कुमार को खुश करना जरूरी है क्योंकि जब तक संतान खुश नहीं होगा मां खुश नहीं हो सकती है। मां को खुश करने के लिए  इस दिन को पांच वर्ष की पांच कन्याओं और पांच लड़को को खीर या फिर मिठाई खिलाएं। भोजन कराने के बाद कन्याओं को लाल चुनरी और दक्षिणा दें और लड़को को सेब और दक्षिणा दे।

माना जाता है कि  गला एवं स्वर क्षेत्र पर स्कंदमाता का प्रभाव होता है। इसलिए जिन्हें गले में किसी प्रकार की तकलीफ या फिर वाणी दोष हैं उन्हें गंगाजल में पांच लौंग मिलाकर स्कंदमाता का आचमन कराना चाहिए और इसे प्रसाद स्वरूप पीना चाहिए। इससे आपको फायदा हो सकता है।

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