kalratri
इस कारण हुआ इसकी उत्पत्ति
दुर्गासप्तशती के पहले चरित्र में बताया गया है कि भगवान विष्णु जब सो रहे थे तब उनके कान के मैल से दो भयंकर असुर मधु और कैटभ उत्पन्न हुए। ये दोनों असुर ब्रह्मा जी को मारना चाहते थे। ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की योगनिद्रा की आराधना की। ब्रह्मा जी भगवान विष्णु की योगनिद्रा को कालरात्रि, मोहरात्रि के रूप में ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप किया-
कालरात्रिमर्हारात्रिर्मोहरात्रिश्र्च दारूणा. त्वं श्रीस्त्वमीश्र्वरी त्वं ह्रीस्त्वं बुद्धिर्बोधलक्षणा
तब ब्रह्मा जी की वंदना से देवी कालरात्रि ने भगवान विष्णु को निद्रा से जगाया। भगवान विष्णु ने मधु-कैटभ का वध करके ब्रह्मा जी की रक्षा की।
ऐसे करें पूजा
इस दिन कहीं-कहीं पर जब मां कालरात्रि की पूजा तांत्रिक विधि से की जाती है। नवरात्रों के सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है। देवी का यह रूप ऋद्धि सिद्धि प्रदान करने वाला है।
तंत्र साधना करने वाले साधक आधी रात में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं तथा इस दिन मां की आंखें खुलती हैं। पूजा करने के बाद इस मंत्र से मां को ध्यान करना चाहिए-
एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।
इसके बाद इनकी पूजा पूरी हो जाने के बाद शिव और ब्रह्मा जी की पूजा अवश्य करनी चाहिए। फिर आरती कर प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।
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