Narsimha jayanti
नैवेद्यं शर्करां चापि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम्।
ददामि ते रमाकांत सर्वपापक्षयं कुरु।।
(पद्मपुराण, उत्तरखंड 170/62)
अब भगवान नृसिंह से सुख की कामना करें। रात में जागरण करें तथा भगवान नृसिंह की कथा सुनें। दूसरे दिन यानी पूर्णिमा पर स्नान करने के बाद फिर से भगवान नृसिंह की पूजा करें। ब्राह्मणों को दान दें उन्हें भोजन करवाएं व दक्षिणा भी दें। इसके बाद पुन: भगवान नृसिंह से मोक्ष की प्रार्थना करें।
अंत में किसी ब्राह्मण तो दान दें। फिर खुद खाना खाएं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, जो इस प्रकार नृसिंह चतुर्दशी के पर्व पर भगवान नृसिंह की पूजा करता है, उसके मन की हर कामना पूरी हो जाती है। उसे मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
इसलिए भगवान ने लिया था नृसिंह अवतार
दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान से भी अधिक बलवान मानता था। उसे मनुष्य, देवता, पक्षी, पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से मरने का वरदान प्राप्त था। उसके राज्य में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता था, उसको दंड दिया जाता था। उसके पुत्र का नाम प्रह्लाद था।
प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था। यह बात जब हिरण्यकशिपु को पता चली तो पहले उसने प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्युदंड दे दिया। लेकिन हर बार भगवान विष्णु के चमत्कार से वह बच गया। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई।
तब भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। जब हिरण्यकशिपु स्वयं प्रह्लाद को मारने ही वाला था, तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का वध कर दिया।
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