Narasimha Jayanti 2019: नृसिंह जयंती का शुभ मुहूर्त , पूजा विधि और व्रत कथा
Narasimha jayanti 2019 - पुराणों के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यपु का वध किया था और आज वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी है। अतः आज के दिन भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार की पूजा का विधान है।
श्री नृसिंह जयंती 2019: आज श्री नृसिंह चतुर्दशी है। नरसिंह पुराण के अनुसार हेमाद्रि व्रतखण्ड के भाग- 2 के पृष्ठ 41 से 49 तक, पुरुषार्थ चिन्तामणि के पृष्ठ 237 से 238 में इसे नृसिंह जयंती के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यपु का वध किया था और आज वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी है। अतः आज के दिन भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार की पूजा का विधान है। कहते हैं आज, यानी वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के साथ अगर स्वाति नक्षत्र, शनिवार का दिन, सिद्धि योग एवं वणिज करण हो तो करोड़ गुना पुण्य प्राप्त होता है।
श्री नृसिंह जयंती का शुभ मुहूर्त
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार आज के दिन ये सारी चीज़ें तो नहीं है, लेकिन आज स्वाति नक्षत्र और वणिज करण है। स्वाति नक्षत्र आज देर रात 03 बजकर 07 मिनट तक रहेगा, जबकि वणिज करण आज शाम 05:08 से अगली सुबह 04:11 तक रहेगा। साथ ही आपको बता दूं कि आज देर रात 03 बजकर 07 मिनट तक सारे काम बनाने वाला रवि योग भी रहेगा। ऐसे में आज के दिन नृसिंह भगवान की पूजा करना आपके लिये श्रेयस्कर होगा। कई मान्यताओं में आज के दिन व्रत करने की भी परंपरा है।
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श्री नृसिंह जयंती की पूजा विधि
भगवान नरसिंह की पूजा शाम को होती है। शाम के समय मंदिर के पास नरसिंह के साथ माता लक्ष्मी की भी मूर्ति या तस्वीर रखें। पूजा के लिए मौसम के फल, फूल, चंदन, कपूर, रोली, धूप, कुमकुम, केसर, पंचमेवा, नारियल, अक्षत, गंगाजल, काले तिल और पीताम्बर रखें। भगवान नरसिंह और माता लक्ष्मी को पीले वस्त्र पहनाएं। चंदन, कपूर, रोली और धूप दिखाने के बाद भगवान नरसिंह की कथा सुनें और मंत्र का जाप करें। पूजा-पाठ के बाद गरीबों को तिल, कपड़ा आदि दान करें।
नरसिंह जयंती की कथा
प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार कश्यप नाम का एक राजा था। उसके दो पुत्र थे हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप। एक बार हिरण्याक्ष धरती को पाताल लोक में ले गया। तब विष्णु जी ने क्रोध में आकर उसका वध कर दिया और वापस शेषनाग की पीठ पर धरती को स्थापित कर दिया। अपने भाई की मृत्यु के बाद हिरण्यकश्यप ने बदला लेने की योजना बनाई। इसके लिए उसने ब्रह्मा जी को कठोर तपस्या कर प्रसन्न किया और वरदान मांगा कि ना उसे कोई मानव मार सके और ना ही कोई पशु, उसकी ना दिन में मृत्यु हो ना रात में, ना घर के भीतर और ना बाहर, ना धरती पर और ना ही आकाश में, ना किसी अस्त्र से और किसी शस्त्र से।
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यह वरदान प्राप्त कर उसे अंहकार हुआ कि उसे कोई नहीं मार सकता। वह स्वंय को भगवान समझने लगा। उसके अत्याचारों से तीनों लोक परेशान हो उठे। वह लोगों को तरह-तरह से कष्ट देने लगा। लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था। उसने प्रहलाद को विष्णु की भक्ति करने से रोका और मारने की कोशिश की।
एक दिन प्रहलाद ने अपने पिता से कहा कि भगवान विष्णु हर जगह मौजूद हैं, तो हिरण्यकश्यप ने उसे चुनौती देते हुए कहा कि अगर तुम्हारे भगवान सर्वत्र हैं, तो इस स्तंभ में वो क्यों नहीं दिखते? ये कहने के बाद उसने उस स्तंभ पर प्रहार किया। तभी स्तंभ में से भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए। यह आधा मानव आधा शेर का रूप था।
उन्होंने हिरण्यकश्यप को उठा लिया और उसे महल की दहलीज पर ले गए। भगवान नरसिंह ने उसे अपनी जांघों पर लिटाकर उसके सीने को नाखूनों से फाड़ दिया।
भगवान नरसिंह ने जिस स्थान पर हिरण्यकश्यप का वध किया, उस समय वह न तो घर के अदंर था और ना ही बाहर, ना दिन था और ना रात, भगवान नरसिंह ना पूरी तरह से मानव थे और न ही पशु। नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को ना धरती पर मारा ना ही आकाश में बल्कि अपनी जांघों पर मारा। मारते हुए शस्त्र-अस्त्र नहीं बल्कि अपने नाखूनों का इस्तेमाल किया। हिंदु धर्म में इसी दिन को नरसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है।