नई दिल्ली: इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने को 'मुहर्म' कहते हैं और महीने के 10वें दिन को यौम-ए-आशुरा के नाम से भी जाना जाता है। अरबी भाषा में इस अशुरा शब्द का मतलब होता है दसवां दिन। इस साल 10 सितंबर मंगलवार को 'मुहर्म' यानी अशुरा मनाया जाएगा। शिया मुस्लमान मुहर्म मनाते हैं और यह अशुरा यानि 10 दिन तक शोक के रूप में मनाते हैं। इसके पीछे की खास वजह यह है कि शिया मुस्लमान के मुताबिक इसी दिन पैगंबर मुहम्मद के पोते इमाम हुसैन को उनके परिवार के द्वारा धर्म की रक्षा करने के लिए उनकी शहादत दे दी गई थी।
मुहर्म के पीछे की कहानी यह है कि हजरत मुहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन इस्लाम धर्म की रक्षा करने के लिए इराक के प्रमुख शहर कर्बला में यजीद से जंग लड़ रहे थे। यजीद के पास काफी बड़ी सैना थी और वह अपने सैनिक बल के दम से हजरत इमाम हुसैन और उनके काफिले पर काफी जुल्म और शोषण कर रहा था। याजीद उस क्षेत्र में इतना ज्यादा जुर्म कर रहा था उसकी कोई सीमा न थी। यजीद ने वहां रह रहे लोग, बूढ़े, जवान, बच्चों पर पानी पीने तक पर पहरा लगा दिया था। भूख- प्यास के बीच जारी इस युद्ध में हजरत इमाम हुसैन ने यजीद के सामने हार मानने से ज्यादा अच्छा अपनी प्राणों की आहुति देना ही ठीक समझा। और यही वो दिन था जब हजरत इमाम हुसैन और पूरा काफिला शहीद हो गया। इसलिए इस दिन को इमाम हुसैन और उनके काफिले को याद करते हुए मुहर्म के तौर पर हर साल मनाया जाता है।
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