जानें आखिर क्यों मनाई जाती हैं मकर संक्रांति, ये है पौराणिक कथाएं
मकर संक्रांति हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है। इस पर्व का पुराणों में भी काफी वर्णन किया गया है।
मकर संक्रांति हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है। इस पर्व का पुराणों में भी काफी वर्णन किया गया है। शीत ऋतु के पौष मास में जब सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो सूर्य की इस संक्रांति को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। पिछले कुछ सालों से मकर संक्रांति की तिथि को लेकर काफी असमंजस चल रही हैं कि आखिर किस दिन मनाया जाएगा ये पर्व। इस साल ये पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। शास्त्रों में इस दिन का बहुत ही महत्व बताया गया है। देवताओं के दिनों की गणना भी इस दिन से ही आरंभ होती है। आज के दिन स्नान, ध्यान और दान का विशेष महत्व है।
सूर्य के उत्तरायण होने पर हर मनुष्य की कार्यक्षमता भी बढ़ जाती है। मकर संक्रांति पर तिल, खिचड़ी सेवन तथा इसके दान का खास महत्व है। इस दिन विशेष रूप से पतंग उड़ाई जाती है।
मकर संक्रांति का त्योहार किसी एक कारण से नहीं बल्कि अनेक कारणों से मनाया जाता है। जी हां, इस त्योहार को मनाने के पीछे कई कथाओं को याद किया जाता है। आइए जानते हैं इन कथाओं के बारे में-
माना जाता है कि इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव के घर एक महीने के लिए उनसे मिलने जाते हैं। ये दिन खास तौर से पिता पुत्र के लिए विशेष माना जाता है, क्योंकि इस दिन पिता-पुत्र का रिश्ता निकटता के रूप में देखा जाता है। वैसे, ज्योतिष की दृष्टि से सूर्य और शनि का तालमेल असंभव है, लेकिन सूर्य खद अपने पुत्र के घर जाते हैं।
मकर संक्रांति को मनाने के पीछे एक कथा ये भी है कि इस दिन भगवान विष्णु ने मधु कैटभ नाम के एक राक्षस का वध किया था। उन्होंने मधु के कंधों पर मंदार पर्वत रख कर उसे दबा दिया था। इस दिन भगवान विष्णु को मधुसुधन का नाम दिया गया था। इसके साथ ही बुराई में जीत के साथ इस त्योहार को मनाया जाता है।
संक्रांति के अवसर पर पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण अवश्य करना चाहिए। कहा जाता है कि आज के दिन महाराज भागीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए गंगा में तर्पण किया था। मकर संक्रांति के खास मौके पर गंगा सागर में आज भी मेला लगता है।
महाभारत काल में भीष्म पितामह ने भी अपने प्राण त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन को ही चुना था। भीष्म ने मोक्ष पाने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने के पश्चात अपने शरीर को त्यागा था। उत्तरायणमें शरीर त्यागने वाले व्यक्ति की आत्मा को मोक्ष मिलता है और देवलोक में रहकर आत्मा पुनः गर्भ में लौटती है।
मकर संक्रांति के अवसर पर ही मां यशोदा ने कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था। उस समय सूर्य देवता उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और तभी सूर्य देव ने मां यशोदा को उनकी मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद दिया था।
देखें वीडियो