भारत का ये मशहूर शिव मंदिर जिसके चर्चे पूरी दुनिया में है, जानिए इससे जुड़ी खास बातें
महाशिवरात्रि 2018 की तैयारी अपने अतिम चरण पर पहुंच चुकी है। मंदिर से लेकर हर धार्मिक स्थल पर इसको लेकर विशेष तैयारी की गई है। इस महापर्व का सप्ताह शुरू हो गया है।
नई दिल्ली: महाशिवरात्रि 2018 की तैयारी अपने अतिम चरण पर पहुंच चुकी है। मंदिर से लेकर हर धार्मिक स्थल पर इसको लेकर विशेष तैयारी की गई है। इस महापर्व का सप्ताह शुरू हो गया है। इस खास अवसर पर हम आपको बताने जा रहे हैं कि भगवान शिव की ऐसी फेमस मदिरों के बारे में जिसका नाम तो आपने कई बार सुना होगा लेकिन इससे जुड़ी कई ऐसी खास चीज जो शायद ही आपको पता होगा।
आज इस खास अवसर पर हम बात करेंगे केदरनाथ मंदिर के बारे में। गिरिराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग। भारत एक ऐसा देश है जहां पूजा-पाठ को बहुत मान्यता दी जाती है। हिंदू धर्म में वैसे तो हर देवी-देवता को पूजा जाता है लेकिन भगवान के तीन रूपों ब्रह्ममा, विष्णु और शिव की यहां सबसे अधिक महत्ता है।
यही कारण है कि देशभर में जहां भी इन देवताओं के मंदिर स्थित हैं, वहां भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिल जाती है. लोग इन मंदिरों में अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए दिल खोलकर चढ़ावा भी चढ़ाते हैं. अगर बात करें भगवान शिव की, तो इनकी महिमा अपरंपार है, शिवरात्रि हो या 16 सोमवार, भक्त इनकी श्रद्धा और भक्ति में कोई कसर नहीं छोड़ते। आइए आज बात करते हैं भगवान शिव के 3 ऐसे मंदिरों के बारे में, जो भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में भी काफी प्रसिद्ध हैं।
केदारनाथ मंदिर
मंदाकिनी नदी के निकट उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय पर्वत पर स्थित, केदारनाथ मंदिर दुनिया भर में हिंदुओं का प्रसिद्ध मंदिर है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर 12 ज्योतिर्लिंग में शामिल है। विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर 3562 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह शिव मंदिर उत्तराखंड के चार धाम यात्रा के चार स्थानों में यमुनोत्री, गंगोत्री और बद्रीनाथ में गिना जाता है। इतना ही नहीं केदारनाथ, पंच केदार का निर्माण करने वाले पांच मंदिरों में से एक है। अधिक ऊंचाई होने के कारण सर्दियों में यह मंदिर बर्फ की चादर में लिपट जाता है।
बता दें कि यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग के हैं। मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है। > मंदिर के गर्भगृह में अर्धा के पास चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तंभ हैं, जहां से होकर प्रदक्षिणा होती है। अर्धा, जो चौकोर है, अंदर से पोली है और अपेक्षाकृत नवीन बनी है। सभामंडप विशाल एवं भव्य है। उसकी छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है। विशालकाय छत एक ही पत्थर की बनी है। गवाक्षों में आठ पुरुष प्रमाण मूर्तियां हैं, जो अत्यंत कलात्मक हैं।