धर्म डेस्क: जब हम भगवान शिव का नाम लेते है तो उन्हें शिव-शंकर भी कह देते है। सोचते है कि दोनों एक ही नाम और एक ही अर्थ है लेकिन बता दूं कि दोनों का अर्थ और प्रतिमाएं भी अलग होती है।
जहां शिव की प्रतिमा अंडाकार और अंगुष्ठाकार होती है। वहीं शंकर का आकार हमारे जैसे शरीरिक आकार में होता है।
शिव की यादगार में शिवरात्रि मनाई जाती है ना कि शंकर रात्रि। इसलिए शिव निराकार परमात्मा हैं और शंकर सूक्ष्म आकारी देवता है। जानिए ऐसा क्यों है...
भगवान शंकर
यह ब्रह्मा और विष्णु की तरह ही सूक्ष्म शरीर धारण किए हुए है। जिसके कारण इन्हें महादेव कहा जाता है। इन्हें परमात्मा नहीं कहा जा सकता है। जो कि शंकरपुरी में निवास करते है। यह परमात्मा शिव की एक रचना है। जैसे ब्रह्मा और विष्णु है।
शिव
शिव एक परमात्मा है। जिसका कोई भी शरीर नहीं है। यह मुक्तिधाम में वास करते है। जहां पर कोई वास नहीं करता है। परमात्मा शिव ने ही भगवान विष्णु, ब्रह्मा और शंकर की रचना की थी।
जब भगवान शिव के हाथों में तीनों शक्तियां यानी कि ब्रह्मा, विष्णु और शंकर होते है। तो वह जीव की उत्पत्ति कर सकते है और संहार भी कर सकते है।
शंकर सिर्फ करते है विनाश
भगवान शंकर सिर्फ विनाश करते है। इनके हाथों में उत्पत्ति नहीं है। यह मानव का किसी न किसी तरह से संहार करते है। वह बाढ़ में स्थूल रुप में पतित प्रकृति, विकारी दुनिया का विनाश करते है।
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