धर्म डेस्क: लोहड़ी उत्तर भारत का एक फेमस त्योहार है। यह देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीके, रीति-रिवाज से मनाया जाता है। यह मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है।
ये भी पढ़े- मकर संक्रांति पर पतंगे ही नही उड़ती, जानिए इस दिन से जुड़े दिलचस्प तथ्य
मकर संक्रान्ति की पूर्वसंध्या पर इस त्यौहार का उल्लास रहता है। रात में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं। इस समय रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाए जाते हैं। इस बार लोहड़ी 13 जनवरी, बुधबार को हैं। इस दिन सब एक-दूसरे से मिलकर इस खुशी को बाटते है।
ऐसे मनाते हैं लोहड़ी का उत्सव
लोहड़ी के शाम को जब सूरज ढल जाता है तो घरों के बाहर बड़े-बड़े अलाव जलाए जाते हैं। महिला और पुरुष सज-सवर कर अलाव के चारों ओर इकट्ठा होकर भांगड़ा नृत्य करते हैं। क्योंकि अग्नि ही इस पर्व के मुख्य देवता हैं, इसलिए चिवड़ा, तिल, मेवा, गजक आदि की आहुति भी अलाव में चढ़ाई जाती है।
इसी के साथ-साथ नगाड़ों की तेज ध्वनि के साथ डांस करते है। और सभी एक-दूसरें को लोहड़ी की शुभकामनाएं देते है। और सब चारों तरफ बैठकर मूंगफली, रेवड़ी आदि प्रसाद के रप में खाते है। यह पंजाबियों का मुख्य त्योहारों में से एक है।
लोहड़ी पर्व की कथा
द्वापरयुग में जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया, तब कंस सदैव बालकृष्ण को मारने के लिए नित्य नए प्रयास करता रहता था।
अगली स्लाइड में पढ़े कथा के बारें में
Latest Lifestyle News