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जानें मुहर्रम और ताज़िये का क्या है संबंध

नई दिल्ली: मुहर्रम और ताज़िये का गहरा संबंध है। मुहर्रम में शिया मुसलमान नौ दिन हज़रत इमाम हुसैन की शहादत को याद करने के बाद आख़िरी दिन (अशूरा) यानी दसवें दिन ताज़िये का जुलूस निकालर

सन् 680 में इसी माह में कर्बला नामक स्थान में एक धर्म युद्ध हुआ था, जो पैगम्बर हजरत मुहम्मद के नाती तथा अधर्मी यजीद (पुत्र माविया पुत्र अबुसुफियान पुत्र उमेय्या) के बीच हुआ। इस धर्म युद्ध में वास्तविक जीत हज़रत इमाम हुसैन की हुई। पर ज़ाहिरी तौर पर यजीद ने हज़रत इमाम हुसैन और उनके सभी 72 साथियों का क़त्ल कर दिया था, जिसमें उनके छः महीने की उम्र के पुत्र हज़रत अली असग़र भी शामिल थे और तभी से दुनिया के न सिर्फ़ शिया मुसलमान बल्कि दूसरी क़ौमों के लोग भी इस महीने में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का ग़म मनाकर उनकी याद करते हैं।

इमाम हुसैन की शहादत से बहुत पहले उनके नाना यानी पैगंबर साहब ने कहा था कि इस्लाम को बचाने के लिए तुम्हारी शहादत पूरे परिवार के साथ होगी लेकिन तुम्हारा नाम जब तक दुनिया है, तब तक कायम रहेगा। जिनका विश्वास मानवता, सहिष्णुता, अहिंसा में होगा, वे लोग तुम्हारी याद दुनिया का वजूद रहने तक मनाते रहेंगे।

680 ई. से शुरू हुआ सिलसिला आज भी जारी है। हालांकि कई देशों में इमाम हुसैन का गम मनाने की मनाही है लेकिन दुनिया में जहां-जहां सही मायने में लोकतंत्र है, वहां इमाम हुसैन का ग़म मनाया जाता है।

इस मास में रोज़ा रखने की खास अहमियत है। रमज़ान के अलावा सबसे अच्छे रोज़े वे हैं जो अल्लाह के महीने यानी मुहर्रम में रखे जाते हैं। कहा जाता है कि मुहर्रम की 9 तारीख़ को की जाने वाली इबादतों का बड़ा सबाब मिलता है।

हज़रत मुहम्मद के साथी इब्ने अब्बास के मुताबिक हज़रत मुहम्मद ने कहा कि जिसने मुहर्रम की 9 तारीख का रोज़ा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ हो जाते हैं तथा मुहर्रम के एक रोज़े का सबाब 30 रोज़ों के बराबर होता है।

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