आखिर क्यों सावन मास को माना जाता है शिव जी का प्रिय माह, जानिए वजह
भगवान शिव का सावन मास प्रिय माने जाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं है जो प्रचलित है। जानिए इनके बारें में।
धर्म डेस्क: श्रावण के महीने को भगवान शिव का प्रिय माह माना जाता है। इस महीने में महादेव की पूजा, आराधना का विशेष महत्व होता है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु सामर्थ्य अनुसार व्रत, उपवास, पूजन, अभिषेक आदि करते हैं। इस माह में की गई उपासना का विशेष फल भक्तों को प्राप्त होता है। लेकिन आखिर शिव की आराधना के लिए यह मास ही उत्तम क्यों माना जाता है?
भगवान शिव का सावन मास प्रिय माने जाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं है जो प्रचलित है। जानिए इनके बारें में।
सावन में करते है भूलोक की रक्षा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के आरंभ से ही त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश उसकी रक्षा करते आ रहे हैं। ऐसे में जब सावन के शुरु होने से ठीक पहले विष्णु जी देवशयनी एकादशी पर योग निद्रा में चले जाते हैं, और सृष्टि के पालन की सारी ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर पाताललोक में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं। तब उनका सारा कार्यभार महादेव भोले शंकर संभाल लेते हैं। सावन का प्रारंभ होते ही भगवान शिव जाग्रत हो जाते हैं और माता पार्वती के साथ पृथ्वी लोक का सारा कार्यभार संभाल लेते हैं। इसलिए सावन का महीना शिव के लिए बेहद खास होता है। (Sawan 2018: अकाल मृत्यु का भय सता रहा है, तो करें सावन में इस शिव मंत्र का जाप )
दूसरी पौराणिक कथा
सावन के महीने में भगवान शिव जी ने समुद्र मंथन से निकला विष पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। यहीं कारण है कि इस महीने को शिव जी का प्रिय महीना माना जाता है। इसी के चलते ही सावन का महीना शिव जी की पूजा के लिए शुभ माना जाता है। जैसे इस महीने में सबसे ज्यादा वर्षा होती है और अधिक वर्षा होने से विष से तप्त हुर्इ शिवजी की देह को ठंडक प्राप्त होती है।
तीसरी पौराणिक कथा
इस पौराणिक कथा के अनुसार सनत कुमारों द्वारा भगवान शिव से सावन माह के प्रिय होने का कारण पूछा, तो भगवान शिव ने इसका उत्तर दिया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति द्वारा अपने देह का त्याग किया था, उससे पहल देवी सती ने महादेव को प्रत्येक जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जनत में देवी सती ने राजा हिमाचल और रानी मैना के घर में पार्वती के रूप में जन्म लिया था। पार्वती के रूप में देवी ने अपनी युवावस्था में, सावन के महीने में अन्न, जल त्याग कर, निराहार रह कर कठोर व्रत किया था। मां पार्वती के इस व्रत से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया। तभी से भगवान महादेव सावन का महीन अतिप्रिय है। यही कारण है कि अन्य पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि सावन से प्रारंभ कर सोलह सोमवार के व्रत करने से कन्याओं को सुंदर पति मिलते हैं तथा पुरुषों को सुंदर पत्नियां मिलती हैं।
नक्षत्रों और चंद्रमा का महत्व
इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हिन्दू वर्ष में महीनों के नाम नक्षत्रों के आधार पर रखे गये हैं। जैसे पहला माह चैत्र होता है, जो चित्रा नक्षत्र से संबंधित है। इसी तरह सावन महीना श्रवण नक्षत्र से संबंधित है। श्रवण नक्षत्र का स्वामी चन्द्र होता है और चन्द्रमा शंकर जी के मस्तक पर सुशोभित है। जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है, तब सावन महीना प्रारम्भ होता है। गर्म सूर्य पर चन्द्रमा की ठण्डक होती है, इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से वर्षा होती है। जिससे विष को ग्रहण करने वाले महादेव को ठण्डक मिलती है ये प्रमुख कारण है कि शिवजी को सावन का महीना अत्यंत प्रिय है। ( Sawan Shivratri 2018:जानें कब है शिवरात्रि, इस शुभ मुहूर्त में पूजा कर करें शिवजी को प्रसन्न )