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हिंदू धर्म में जनेऊ पहनना क्यों है जरुरी?, जानिए

सभी धर्मों में तरह-तरह के रीतिरिवाज, परंपराएं और मान्यताएं होती हैं। हिन्दू धर्म में भी शादी-ब्याह, जन्म, मृत्यु, नामकरण जैसे मौक़े पर कुछ परंपराएं होती हैं जिनका पालन किया जाता है। इन्ही में से एक परंपरा है। यज्ञोपवीत यानी की जनेऊ धारण करना।

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धर्म डेस्क: सभी धर्मों में तरह-तरह के रीतिरिवाज, परंपराएं और मान्यताएं होती हैं। हिन्दू धर्म में भी शादी-ब्याह, जन्म, मृत्यु, नामकरण जैसे मौक़े पर कुछ परंपराएं होती हैं जिनका पालन किया जाता है। इन्ही में से एक परंपरा है। यज्ञोपवीत यानी की जनेऊ धारण करना।

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हिंदू धर्म में जनेऊ धारण करना एक महत्वपूर्ण रिवाज है। सबसे ज्यादा ब्राह्मण कुल के लोग ज्यादा धारण करते है। तभी उसे ब्राह्मण कुल का माना जाता है। जानिए आखिर हिंदू धर्म में जनेऊ धारण करना क्यों जरुरी है।

जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है। जिसे हिंदू धर्म में यज्ञोपवीत नाम से जाना जाता है। यह इसका संस्कृत भाषा में नाम है। हिंदू धर्म में जनेऊ का पवित्र सूत का दागा माना जाता है। इसे पुरुष बाएं कंधे के ऊपर से दाई भुजा के नीचे की ओर पहनते है।

हिंदू धर्म में पहले के समय की बात करें तो शिक्षा ग्रहण करने से पहले यज्ञोपवीत होता था। उसके पश्चात ही शिक्षा दी जाती थी, लेकिन आज के समय में 10 -12 साल की उम्र के लड़के की जनेऊ पहना दी जाती है। यज्ञोपवीत को उपनयन संस्कार नाम से भी जाना जाता है।

उपनयन संस्कार होने से पहले उस लड़के को गायत्री मंत्र सिखाया जाता है जोकि उसके पिता द्वारा संपन्न किया जाता है। जानिए पुरुष जनेऊ क्यों धारण करते है। इसके पीछे का कारण क्या है।

जनेऊ धारण करना
जनेऊ धारण करने की भी अपनी एक विधि है। इसके अनुसार जो व्यक्ति अविवाहित होगा उसे तीन धागों वाला जनेऊ और विवाहित व्यक्ति को दो धागें वाला जनेऊ पहनाया जाता है। और अगर किसी विवाहित व्यक्ति के बच्चे है तो उसे भी तीन धागों वाला जनेऊ पहनाया जाता है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह तीन धागे मनुष्य के तीन ऋण माने जाते है। जो निम्न है-

  • माता-पिता और पूर्वजों का ऋण
  • अध्यापक का ऋण
  • विद्वानों का ऋण

इसके अलावा हिंदू धर्म में अनुसार जनेऊ के तीनों धागों में तीन देवियां क्रमश: पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती विराजमान है। जोकि आपके जीवन को सफल बनाने के लिए काफी है।

हिंदू धर्म में माना जाता है कि इसे धारण करने से मनुष्य के विचार, शब्द, कामों में निर्मलता आ जाती है। साथ ही यह ब्रह्मचारी जीवन का नेतृत्व भी करता है। साथ ही यह किसी बालक के शिक्षा से भी संबंध रखता है।  

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