पुत्तिंगल मंदिर: आतिशबाजी के अलावा इन कारणों से खास है ये मंदिर
केरल के कोल्लम जिले के पुत्तिंगल मंदिर सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। जानिए इस मंदिर के बारें में और बातें...
धर्म डेस्क: केरल के कोल्लम जिले के पुत्तिंगल मंदिर सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर पर दूर-दूर से लोग आते है। पुत्ति का मतलब मलयालम में पहाड़ होता है। माना जाता है कि इस छोटे से मंदिर का निर्माण देवी ने तब किया तब उन्हें इस बात का अनुभव हुआ कि वह पहाड़ में एक चीटी है। फिर सदियों बाद इस मंदिर का निर्णाण जोड़े के रुप में किया गया।
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पुत्तिंगल मंदिर में कई उत्सवों का आयोजन किया जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा नवरात्र में आतिशबाजी की प्रतियोगिता में होता है, क्योंकि इस उत्सव में आस-पास के लोग ही नहीं, बल्कि दुनिया के कोने-कोने से लोग आकर आतिशबाजी का नजारा देखते है। यह नजारा अपने आप में अनोखा होता है।
वार्षिक मंदिर त्योहार जो भी देवी का जन्म दिन है मीनम (मार्च-अप्रैल) के मलयालम महीने में भरणी के दिन मनाया जाता है। ये मंदिर अपने अस्तित्व में साल 2006 में आया। साल 2006 में इसका पुननिर्माण किया गए है। जो कि अब केरल राज्य का सबसे बड़ा मंदिर माना जाने लगा। साथ ही इसका परिसर इतना बड़ा है जो कि केरला के किसी मंदिर में नहीं है। इस मंदिर का नवीनीकरण थोदूपनी पूजा के साथ शुरु कर दिया गया है।
इस मंदिर में देवी को प्रसाद के रुप में पीटा चावल. फूला चावल, नारियल, और फूल मुख्य रुप से चढ़ाया जाता है। सालभर में एक बार ऐसा त्योहार आता है जहां पर लाखों लोग बिना किसी समस्या के एक साथ इस मंदिर के परिसर में एकत्र होते है। जहां से आतिशबाजी की जाती है।
यह उत्सव रात को 10 बजे शुरु होता है जो कि दूसरे दिन सुबह खत्म होता है। इस उत्सव के बाद यह मंदिर 7 दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है। जिसमें न तो देवी की पूजा की जाती है और न ही कोई अन्य काम।
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