pipal tree
रात में पीपल की पूजा को निषिद्ध माना गया है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि रात्री में पीपल पर दरिद्रा बसती है और सूर्योदय के बाद पीपल पर लक्ष्मी का वास माना गया है।
इस कथा के अनुसार मां लक्ष्मी और उनकी छोटी बहन दरिद्रा श्री विष्णु के पास गई और उनसे बोली कि जगत के पालनहार कृपया हमें रहने का स्थान दें। इस बात पर विष्णु बोले कि आप दोनों लोग पीपल के वृक्ष पर निवास करों। इस तरह दोनों बहने उस वृक्ष में निवास करने लगी। इसी साथ पीपल ने भगवन विष्णु से यह वरदान प्राप्त कर दिया कि जो शनिवार के दिन मेरी पूजा करेगा। उसके ऊपर लक्ष्मी हमेशा खुश रहेगी और उनकी कृपा उसपर हमेशा बना रहेगी। इसी तरह रविवार को पूजा न करने के पीछे का कारण है।
एक बार विष्णु भगवान ने माता लक्ष्मी से विवाह करना चाहा तो लक्ष्मी माता ने इंकार कर दिया क्योंकि उनकी बड़ी बहन दरिद्रा का विवाह नहीं हुआ था। उनके विवाह के बाद ही वह श्री विष्णु से विवाह कर सकती थी। इसलिए माता लक्ष्मी ने अपनी बहन दरिद्रा से पूछा कि वो कैसा वर पाना चाहती हैं। तो वह बोली कि वह ऐसा पति चाहती हैं जो कभी पूजा-पाठ न करे व उसे ऐसे स्थान पर रखे जहां कोई भी पूजा-पाठ न करता हो।
इसी प्रकार भगवान विष्णु ने उनके लिए ऋषि नामक वर चुना और दोनों विवाह सूत्र में बंध गए। अब दरिद्रा की शर्त के अनुसार ही उन दोनों को ऐसे स्थान पर वास करना था जहां कोई भी धर्म कार्य न होता हो। ऋषि उसके लिए उसका मन भावन स्थान ढूंढने निकल पड़े लेकिन उन्हें कहीं पर भी ऐसा स्थान न मिला। अधिक समय बीत जाने के बाद ऋषि के वापस न आने पर दरिद्रा उनके इंतजार में विलाप करने लगी।
इसी क्रम में भगवान विष्णु ने दुबारा लक्ष्मी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो लक्ष्मी जी बोलीक कि जब तक मेरी बहन की गृहस्थी नहीं बसती मैं विवाह नहीं करूंगी। इस बात पर भगवान विष्णु को समझ नही आया कि ऐसा कौन सी जगह ढूढे जहां पर कोई धर्म न हो। धरती पर ऐसा कोई स्थान नहीं है। जहां कोई धर्म कार्य न होता हो। इसलिए भगवान विष्णु ने अपने निवास स्थान पीपल को रविवार के लिए दरिद्रा और उसके पति को दे दिया। इसीकारण हर रविवार पीपल के नीचे देवताओं का वास न होकर दरिद्रा का वास होता है। इसी कारण इस दिन पीपल की पूजा वर्जित मानी जाती है।
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