धर्म डेस्क: हिंदू धर्म में पति-पत्नी के रिश्तों को बहुत ही पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। इन्ही के रिश्तें से ही यह संसार चलता है। माना जाता है कि अगर इन दोनों का साथ न हो तो ये पृथ्वी नष्ट होन के ही तरफ बढ़ जाएगी, क्योंकि इसका कोई अस्तित्व ही नहीं बचेगा।
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इसी के कारण हिंदू धर्म के कई महान साधु-संतो ने कुछ नियम बनाएं। जिनका पालन कर दपंति अपने दायित्वों को पूरा कर सभी सुख-दुख को भोग कर स्वर्ग की प्राप्ति करें। इसी नियम में एक नियम यह है कि कब स्त्री अपने पति के दाई ओर और कब बाई ओर बैठेगी। जानिए ऐसा कब होता है।
स्त्री अपने पति के दाई ओर और कब बाई ओर बैठेने के पीछे भी एक कारण है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि कर्म स्त्री प्रधान या इस संसारिक जीवन से संबंद्ध होते है, उनमें स्त्री बाएं ओर बैठती है। जैसे कि जब स्त्री किसी की सेवा या फिर संसारिक कार्यों में व्यस्त है तो वह पति के बाएं ओर बैठेगी। ऐसे नियम बनाएं गए है।
इसके दूसरी ओर बात करें तो जब कोई पुरुष प्रधान, पुण्य या मोक्ष का काम होता है तो पत्नी पति के दाएं ओर बैठती है। जैसे कि कन्यादान, विवाह, यज्ञ और पूजा-पाठ। जानिए पति के किस ओर स्त्री को बैठना चाहिए। इस बार में इस श्लोक द्वारा अच्छी तरह से समझाया गया है।
वामे सिन्दूरदाने च वामे चैव व्दिरागमने, वामे शयनैकश्यायां भवेज्जाए प्रियार्थिनी।
इस श्लोक के अनुसार पत्नी को पति के बाएं ओर तब बैठना चाहिे जब सिंदूर दान. व्दिरागमन के समय, भोजन, सहवास, सोते समय, आशीर्वाद और बड़ो की सेवा करते समय।
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