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ये बचपन से ही भगवान की भक्ति में लीन हो गए थे। इसके चलते बाबा ने मध्यप्रदेश के हरदा जिले के ग्राम खिड़किया के संत जयंता बाबा से गुरूमंत्र की दीक्षा ग्रहण कर वे तीर्थ करते हुए अमृतसर में अपने ईष्टदेव की पूजा में कुछ दिनों तक रहें।
जिसके कारम वहां पर गुरू साहेब बाबा को देवला बाबा के नाम जानते है। इसके बाद वह यहां से काशी गए। वहां पर भी इसके नाम का मंदिर गायघाट में निर्मित दरभंगा नरेश की कोठी के पास बना हुआ है। माना जाता है कि अभी के महंत को छोड़कर पूर्व में सभी बाबा के उत्तराधिकारियों ने बाबा का अनुसरण करते हुये जीवित समाधियां ली।
इसी कारण यहांपर जो भी बाबा के अनुयायी है। उनका अग्नि संस्कार नही किया जाता है। चाहे वह किसी भी धर्म या जाति के लोग हो। बल्कि उन्हें पास ही किसी खेत या फिर और किसी जगह समाधि बना दी जाती है।
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