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Hindi News लाइफस्टाइल जीवन मंत्र इस खरमास में कोई भी शुभ काम न करके करें दान-पुण्य होगा शुभ

इस खरमास में कोई भी शुभ काम न करके करें दान-पुण्य होगा शुभ

हिंदू धर्म के पंचाग के अनुसार हर साल सौर पौष को खर मास कहते है। जिसे मलमास या फिर काली रात भी कहा जाता है। मलमास आज से यानी कि 16 दिसंबर से

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तब फिर उनकी वही प्रतिझा याद आई कि रास्तें में कही भी नही रुकना नही है। अगर वह रूक गए तो पूरा सौर मंडल नष्ट हो जाएगा। इसलिए सूर्य भगवान ने अपनी नजरें चागों तरफ घुमाई। तभी उन्होनें देखा कि पास के ही तालाब में दो गधें पानी पी रहे है। उन्होंने तुरंत दोनों गधों को अपने रथ पर जोत कर आगे बढ़ गए और अपने सातों घोड़े तब अपनी प्यास बुझाने के लिए खोल दिए गए।

इसी कारण अब गधें अपनी मंद गति से चलने लगें जिसके कारण पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे और सूर्य का तेज बहुत ही कमजोर होकर धरती पर प्रकट हुआ। इसी कारण माना जात है कि पूरे पौष मास के अन्तर्गत पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य देवता का प्रभाव क्षीण हो जाता है और कभी-कभार ही उनकी तप्त किरणें धरती पर पड़ती हैं।

मार्कण्डेय पराण में इस बारें में विस्तार से बताया गया है। जो एक पौराणिक कथा है। इसमें माना जाता है कि खरमास के खर को गधा कहा जाता है। एक बार सूर्य अपने साथ घोड़ों के रथ में बैठकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करता है। इस समय सूर्य को रास्तें में कही भी रूकने की इजाजत नही थी। रास्तें में उन्हें प्यास लगी तो वह पानी के पस जजाने लगे तभी उन्हें अपनी प्रतिज्ञा याद आई।

लेकिन सातों घोड़े साल भर दौड़ लगाते-लगाते प्यास से तड़पने लगे। उनकी इस दयनीय स्थिति से निपटने के लिए सूर्य एक तालाब के निकट अपने सातों घोड़ों को पानी पिलाने के लिए रुकने लगे। तब फिर उनकी वही प्रतिज्ञा याद आई कि रास्तें में कही भी नही रुकना नही है। अगर वह रूक गए तो पूरा सौर मंडल नष्ट हो जाएगा।

इसलिए सूर्य भगवान ने अपनी नजरें चागों तरफ घुमाई। तभी उन्होनें देखा कि पास के ही तालाब में दो गधें पानी पी रहे है। उन्होंने तुरंत दोनों गधों को अपने रथ पर जोत कर आगे बढ़ गए और अपने सातों घोड़े तब अपनी प्यास बुझाने के लिए खोल दिए गए।

इसी कारण अब गधें अपनी मंद गति से चलने लगें जिसके कारण पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे और सूर्य का तेज बहुत ही कमजोर होकर धरती पर प्रकट हुआ। इसी कारण माना जात है कि पूरे पौष मास के अन्तर्गत पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य देवता का प्रभाव क्षीण हो जाता है और कभी-कभार ही उनकी तप्त किरणें धरती पर पड़ती हैं।

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