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Hindi News लाइफस्टाइल जीवन मंत्र Kaal Bhairav Ashtami 2017: जानिए कैसे हुआ काल भैरव की उत्पत्ति, इस कारण काटा ब्रह्मा जी का सिर

Kaal Bhairav Ashtami 2017: जानिए कैसे हुआ काल भैरव की उत्पत्ति, इस कारण काटा ब्रह्मा जी का सिर

मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष यानी कि अगहन मास की अष्टमी को हुआ था। हिंदू धर्म में इस दिन को तंत्र का दिन भी माना जाता है। इस बार काल भैरव अष्टमी 10 नवंबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा। जानिए कैसे हुई उत्पत्ति...

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इसके बाद भगवान शिव ने कहा कि आप लोग कोई चिंता न करें मैं कोई उपाय ढूढ़ता हूं। इतना कह कर भगवान शिव उस जगह पर गए जहां पर दोनों देवता का युद्ध हो रहा था। और वही पर घनघोर बादलों के पीछे छुपकर युद्ध देखने लगे। तभी उन्होनें देखा कि भगवान विष्णु और ब्रह्मा महेश्वर और पशुपति शास्त्रों का उपयोग करने जा रहे थे। जिसके उपयोग से संसार में प्रलय आ सकती थी। तभी भगवान शिव वहां पर ज्योतिमय स्तंभ के रूप में प्रकट हो गए।

जब दोनों देवताओं ने देखा कि यह स्तम्भ अचानक कैसे निकल आया। दोनों देवताओं ने निश्चय किया कि इसके बारे में पता लगाते है। आखिर यह क्या चीज है और इसका अंत कहा पर है। इसके बाद भगवान ब्रह्मा ने सारस का रूप लिया और विष्णु ने मगर का रूप धारण किया । भगवान ब्रह्मा आसमान की और गए यह देखने कि इसका ऊपर अंत कहा है और भगवान विष्णु सागर के नीचे देखने गए कि इसका अंत कहा है। चारों तरफ देख डाला, लेकिन उनको इसका अंत न मिला।

तभी नारद भगवान को ऊपर की ओर एक केतकी का फूल मिला और विष्णु से आकर बोले कि इस स्तंभ का कारण यह फूल है। तो भगवान विष्णु ने बह्मा के चरण पकड़कर माफी मांगने लगे। तभी भगवान शिव ब्रह्मा का छल देखकर वहां पर प्रकट हुए। तभी विष्णु भगवान ने भगवान शिव के चरण पकड़कर माफी मांगी। जिससे कारण भगवान शिव प्रसन्न होकर विष्णु की सत्यवादिता की प्रसन्ना करने लगे।

उसी समय भगवान के भौहें के बीच से एक ज्योति से काल भैरव को प्रकट किया। वह सामने आकर भगवान शिव के आगे हाथ जोड़कर बोले कि हे प्रभु मेरे लिए क्या आदेश है। भगवान शिव ने क्रोधित होकर कहा कि भैरव तुम अपनी पैनी तलवार से ब्रह्मा का पांचवा सिर काट दो। काल भैरव ने ब्रह्मा का सिर पकड़कर उसे धड़ से अलग कर दिया। क्योंकि ब्रह्मा ने इसी मुख से झूठ बोला था।

शिव के कहने पर भैरव काशी को प्रस्थान किया जहां ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली। रूद्र ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया। आज भी ये काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। इनका दर्शन किये वगैर विश्वनाथ का दर्शन अधूरा रहता है। जिस दिन यह सब हुआ उस दिन कृष्ण पक्ष की अगहन मास की अष्टमी थी। जिसे काल भैरव के जन्म तिथि के रूप में मनाते है।

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