धर्म डेस्क: मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष यानी कि अगहन मास की अष्टमी को हुआ था। हिंदू धर्म में इस दिन को तंत्र का दिन भी माना जाता है। इस बार काल भैरव अष्टमी 10 नवंबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा।
माना जाता है कि काल भैरव की पूजा करने से घर पर काली शक्तियों का वास नही होता है। जिससे घर में नकारात्मक ऊर्जा, भूत-प्रत का भय नही रहता है। जानिए शिव पुराण के अनुसार कैसे और कब हुआ काल भैरव का जन्म।
ऐसे हुई काल भैरव की उत्पत्ति
कालभैरव के जन्म को लेकर एक बड़ी ही रोचक पौराणिक कथा है। जिसे शिव पुराण में विस्तार से बताया गया है। इसके मुताबिक एक बार देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु जी से बारी-बारी से पूछा कि जगत में सबसे श्रेष्ठ कौन है? तो उन दोनों ने स्वाभाविक रूप से खुद को ही श्रेष्ठ बताया।
ब्रह्मा ने खुद को श्रेष्ठ बताया जिस पर विष्णु क्रोधित हो गए और बोले कि तुम मेरी नाभि से उत्पन्न हुए हो और अपने आपको सबसे श्रेष्ठ बता रहें। जिसी कारण दोनों देवताओं के बीच भयानक बहस हो गई और यह बहस इतनी बढ़ गई कि युद्ध तक बात पहुंच गई। जिसके कारण दोनों के बीच अस्त्र-शस्त्र से युद्ध होने लगा। जिसके कारण पूरे संसार में प्रलय की स्थिति पैदा हो गई। चारों और हाहकार मचने लगा। लेकिन दोनों देवता अपने युद्ध में ही मस्त थे। सभी देवता इतने व्याकुल हुए कि वह बोले कि सबसे श्रेष्ठ भगवान शिव है। जिनके बिन इस संसार का एक पत्ता भी नही हिल सकता है।
उन्हीं के पास हमें इस समस्या के निजात वही दिला सकते है वही पर चलना चाहिए। सभी देवता बाबा भोलेनाथ के पास पहुंचे और सभी हाल कर दिया।
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