जगन्नाथ मंदिर: अनोखा मंदिर जहां हवा के विपरीत लहराता है ध्वज, साथ ही गुंबद के ऊपर से नहीं उड़ते पक्षी
पुरी का जग्गनाथ मंदिर चार धामों में से एक है। यह मंदिर उड़िसा के पुरी शहर में स्थित है। जानें इस मंदिर के बारें में रोटक बातें।
धर्म डेस्क: पुरी का जग्गनाथ मंदिर चार धामों में से एक है। यह मंदिर उड़िसा के पुरी शहर में स्थित है। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ भगवान बलराम और देवी सुभद्रा की मूर्ति है जो कि विश्वरभर में फेमस है। आपको बता दें कि हर साल पूरी जग्गनाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। इस बार 4 जुलाई को रथ यात्रा है। इस दौरान देश-विदेश के श्रद्धालु इसमें शामिल होते हैं। हर साल रथ यात्रा के दौरान मंदिर के शिखर का ध्वज बदला जाता है। रोजाना शाम को किया जाता है और वह होता है मंदिर के गुंबद पर लगा ध्वजा परिवर्तन। जो ध्वजा लहराती रहती है। इस ध्वजा से जुड़ी एक रहस्यमय बात यह भी है कि यह हवा के विपरीत दिशा में उड़ता है।
माना जाता हैं कि जब भगवान विष्णु चारों धामों की यात्रा पर जाते थे तब वो भारत के उत्तरी भाग उत्तराखण्ड के चमोली मे बना बद्रीनाथ में स्नान करते, जिसके बाद पश्चिम में गुजरात के द्वारका में वस्त्र पहनते हैं, फिर पुरी में भोजन करते और दक्षिण के रामेश्वरम में विश्राम करते, जिसके बाद भगवान कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और बन गया ये जग के नाथ जगन्नाथ का मंदिर।
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माना जाता है कि रथयात्रा के दौरान उस रथ की रस्सी खीचने या छूने मात्र से ही आपको मोक्ष का प्राप्ति हो जाती है। इस रथ यात्रा में को बडे ही धूम-धाम से निकाला जाता है। इसमें तीनों देवी-देवता को अलग-अलग सुसज्जित रथ में विराजित किया जाता है। जो कि अपने आप पर अनोखा है। लेकिन आप जानते है कि विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ जी के मंदिर में कई ऐसे रहस्य है। जिन्हे आप जानकर दंग रह जाएगे। जानि ऐसे रहस्य के बारे में।
हवा के विपरीत लहराता ध्वज
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर के शिखर में जो लाल रंग का ध्वज लगा हुआ है वो हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। जो कि एक आश्चर्य से कम नहीं है। साथ ही प्रतिदिन शाम के समय मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है। ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है।
गुंबद की परछाई नहीं बनती
यह विश्व का सबसे भव्य और ऊंचा मंदिर है। यह मंदिर 4 लाख वर्गफुट में क्षेत्र में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। मंदिर के पास खड़े रहकर इसका गुंबद देख पाना असंभव है। मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है। यानी कि कोई परछाई नहीं दिखाई देती है।
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रहस्यमयी सुदर्शन चक्र
इस मंदिर में शिखर में लगा सुदर्शन चक्र आप पुरी से कहीं से भी देख सकते है, लेकिन सबसे बड़ी खासियत यह है कि आप किसी भी जगह से देखें ये हमेशा सामने से दिखेगा। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है।
इस मंदिर के ऊपर नहीं उड़ते एक भी पक्षी
आपको यह बात जानकर हैरान होगे कि इस मंदिर के ऊपर गुंबद के आसपास अब तक कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया। साथ ही इसके ऊपर से विमान नहीं उड़ाया जा सकता। मंदिर के शिखर के पास पक्षी उड़ते नजर नहीं आते, जबकि देखा गया है कि भारत के अधिकतर मंदिरों के गुंबदों पर पक्षी बैठ जाते हैं या आसपास उड़ते हुए नजर आते हैं। पुरी के मंदिर का यह भव्य रूप 7वीं सदी में निर्मित किया गया।
यहां की रसोई घर में कभी नहीं होती खाने की कमी
500 रसोइए 300 सहयोगियों के साथ बनाते हैं भगवान जगन्नाथजी का प्रसाद। लगभग 20 लाख भक्त यहां भोजन कर सकते है। कहा जाता है कि मंदिर में प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए ही क्यों न बनाया गया हो लेकिन इससे लाखों लोगों का पेट भर सकता है। मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती।
इस मंदिर में प्रसाद अनोखे तरीके से पकाया जाता है। प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है। सबसे बड़ी बात यही है कि कि नीचे वाले बर्तन का खाना न पक कर सबसे ऊपर वाले बर्तन का खाना सबसे पहले पक जाता है।
इस मंदिर में विराजित मूर्ति बदलती रहती है रुप
यहां श्रीकृष्ण को जगन्नाथ कहते हैं। जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा विराजमान हैं। तीनों की ये मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं। जो कि प्रत्येक 12 साल में एक बार होता है प्रतिमा का नव कलेवर। मूर्तियां नई जरूर बनाई जाती हैं लेकिन आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि उन मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं।