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Hindi News लाइफस्टाइल जीवन मंत्र हरतालिका तीज 2017: यह है सुहागिनों और कुंवारी कन्याओं के व्रत की कथा, सुनने से मिलता है विशेष फल

हरतालिका तीज 2017: यह है सुहागिनों और कुंवारी कन्याओं के व्रत की कथा, सुनने से मिलता है विशेष फल

माना जाता है कि हरतालिका तीज का व्रत की कथा ध्यान से सुनने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। जानिए इस कथा और शुभ मुहुर्त के बारें में......

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धर्म डेस्क: पति की लंबी आयु और कुंवारी कन्याएं मनचाहा पति पाने के लिए इस व्रत को रखती है। माना जाता है कि यह व्रत करवा चौथ के व्रत से भी कठिन होता है। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। इस व्रत में सबसे कठिन होता है कि इसमें दिनभर पानी नहीं पिया जाता है। अगले दिन सुबह पानी पिया जाता है। इस बार हरतालिका तीज 24 अगस्त, गुरुवार को है। इस साल ये व्रक 24 अगस्त को सुबह 5 बजकर 42 मिनट से शुरु हो जाएगा। जानिए इसकी कथा के बारें में।

माना जाता है कि इस व्रत की कथा ध्यान से सुनने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। जानिए इस कथा को।  

धर्म ग्रंथों के अनुसार  हरतालिका तीज का व्रत कथा है जिसमें तीज की कथा भगवान शंकर ने पार्वती को उनके पूर्व जन्म का याद दिलाने के लिए के लिए सुनाई थी। जो  इस प्रकार है-
भगवान शिव नें पार्वती को बताया कि वो अपनें पूर्व जन्म में राजा दक्ष की पुत्री सती थीं। सती के रूप में भी वे भगवान शंकर की प्रिय पत्नी थीं। एक बार सती के पिता दक्ष ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उसमें द्वेषतावश भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। जब यह बात सती को पता चली तो उन्होंने भगवान शंकर से यज्ञ में चलने को कहा, लेकिन आमंत्रित किए बिना भगवान शंकर ने जाने से इंकार कर दिया।

तब सती स्वयं यज्ञ में शामिल होने चली गईं औऱ अपने पिता दक्ष से पूछा कि मेरे पति को क्यों न बुलाया इस बात पर दक्ष नें खूब भसा -बुरा शकंर जी को सुनाया जिससे कुंठित होकर वहां उन्होंने अपने पति शिव का अपमान होने के कारण यज्ञ की अग्नि में देह त्याग दी।

अगले जन्म में सती का जन्म हिमालय राजा और उनकी पत्नी मैना के यहां हुआ। बाल्यावस्था में ही पार्वती भगवान शंकर की आराधना करने लगी और उन्हें पति रूप में पाने के लिए घोर तप करने लगीं। यह देखकर उनके पिता हिमालय बहुत दु:खी हुए। हिमालय ने पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से करना चाहा, लेकिन पार्वती भगवान शंकर से विवाह करना चाहती थी।

पार्वती ने यह बात अपनी सखी को बताई। वह सखी पार्वती को एक घने जंगल में ले गई। पार्वती ने जंगल में मिट्टी का शिवलिंग बनाकर कठोर तप किया, जिससे भगवान शंकर प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रकट होकर पार्वती से वरदान मांगने को कहा। पार्वती ने भगवान शंकर से अपनी धर्मपत्नी बनाने का वरदान मांगा, जिसे भगवान शंकर ने स्वीकार किया। इस तरह माता पार्वती को भगवान शंकर पति के रूप में प्राप्त हुए।

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