Mahavir Jayanti 2018: इस कारण वर्धमान कहे जाने लगे महावीर, जानिए इनके अनमोल वचन
भगवान महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे जिनका जीवन ही उनका संदेश है। उनके सत्य, अहिंसा, के उपदेश एक खुली किताब की भांति है। इस बार महावीर जयंती 29 मार्च को पड़ रही है।
धर्म डेस्क: महावीर जयंती का पर्व महावीर स्वामी के जन्म दिन चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है। यह जैनों का सबसे प्रमुख पर्व है। भगवान महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे जिनका जीवन ही उनका संदेश है। उनके सत्य, अहिंसा, के उपदेश एक खुली किताब की भांति है। इस बार महावीर जयंती 29 मार्च यानि आज पड़ रही है।
महावीर का हुआ था एक राज्य परिवार में जन्म
महावीर का जन्म एक राजपरिवार में हुआ था। उनके परिवार में ऐश्वर्य, धन-संपदा की कोई कमी नहीं थी, किंतु युवावस्था में कदम रखते ही उन्होंने संसार की माया-मोह, सुख-ऐश्वर्य और राज्य को छोड़कर, सारी सुविधाओं का त्याग कर वे नंगे पैर पैदल यात्रा करते रहे।
एक राजा जिसने अपने राज्य का त्याग कर दिया। राजसी व्यक्तित्व होते हुए भी सांसारिक सुख का त्याग कर देना और लोगों को सत्य, अहिंसा और प्रेम का मार्ग दिखाना। आखिर यह ढाई हजार वर्ष पूर्व किसने प्रेरित किया था। इन्हें भगवान महावीर का नाम दिया। कहा जाता है कि क्षमा वीरस्य भूषणम्। भगवान महावीर में क्षमा करने का एक अद्भुत गुण था। वे सच्चे महावीर थे। भगवान श्री महावीर तो केवल 30 वर्ष की युवा अवस्था में ही राजपरिवार को छोड़कर ज्ञान प्राप्ति के लिए निकल गए। केवल ज्ञान की खोज में निकलने के बाद उन्हें सत्य, अहिंसा, श्रद्धा, विश्वास प्राप्त हुआ।
इस कारण किया था घर का त्याग
भगवान महावीर उस युग में पैदा हुए जब वैदिक क्रियाकांडों का बोलबाला था। धर्म के नाम पर अनेकानेक धारणाएं हमारी संस्कृति में रची बसीं थीं, जिनके कारण लोग स्वावलंबी न होकर ईश्वर के भरोसे बैठे रहते थे और शूद्र, उच्चवर्ग के अत्याचारों से कराह रहे थे। तीर्थंकर महावीर ने प्रतिकूल वातावरण की कोई परवाह न कर साहस के साथ अपने सिद्धांतों को जनमानस के बीच रखा। उन्होंने ढोंग, पाखंड, अत्याचार, अनाचारत व हिंसा के नकारते हुए दृढ़तापूर्वक अहिंसक धर्म का प्रचार किया।
महावीर ने समाज को अपरिग्रह, अनेकांत और रहस्यवाद का मौलिक दर्शन समाज को दिया। कर्मवाद की एकदम मौखिक और वैज्ञानिक अवधारणा महावीर ने समाज को दी। उस समय भोग-विलास एवं कृत्रिमता का जीवन ही प्रमुख था, मदिरापान, पशुहिंसा आदि जीवन के सामान्य कार्य थे। बलिप्रथा ने धर्म के रूप को विकृत कर दिया था।
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