नई दिल्ली: हिन्दू शास्त्रों में गुरु को भगवान से भी ऊपर दर्जा दिया गया है। कहा जाता है कि यदि भगवान से शापित कोई व्यक्ति है तो उसे गुरु बचा सकते है लेकिन गुरु से शापित व्यक्ति को स्वयं भगवान भी नहीं बचा सकते। गुरु की महिमा अपार है। गुरु बिन व्यक्ति का जीवन निरर्थक है। गुरु के बिना ना तो व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर सकता है और ना ही आत्म मुक्ति। हमारे जीवन में गुरु की भूमिका बेहद अहम है, यूं तो हम इस समाज का हिस्सा कहलाते है लेकिन हमें इस समाज योग्य केवल गुरु ही बनाते हैं।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये।
गुरु बिना ज्ञान कहां, उसके ज्ञान का आदि न अंत यहां।
गुरु ने दी शिक्षा जहां, उठी शिष्टाचार की मूरत वहां।
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। यह दिन लोगों के लिए बेहद खास होता है क्योंकि इस दिन सभी विद्यार्थियों द्वारा गुरु की पूजा की जाती है। बताया जाता है कि प्राचीन समय में जब विद्यार्थी नि:शुल्क गुरु से शिक्षा प्राप्त करते थे तब वह बड़ी श्रद्धा भाव से इस दिन अपने गुरुओं की पूजा किया करते थे।
अपने संसार से तुम्हारा परिचय कराया, उसने तुम्हें भले-बुरे का आभास कराया।
अथाह संसार में तुम्हें अस्तित्व दिलाया, दोष निकालकर सुदृढ़ व्यक्तित्व बनाया।
हिन्दू धर्म ग्रंथो के अनुसार इस दिन जगत गुरु माने जाने वाले महर्षि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। गुरु पूर्णिमा का यह दिन इन्हीं को समर्पित है। आज ही के दिन महर्षि वेद व्यास ने चारों वेदों की भी रचना की थी। इसी कारण से उनका नाम वेद व्यास रखा गया। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है।
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