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गणगौर तीज 30 को: इन दिनों में शिव जी आते है ससुराल, इस तरह करें शिव-पार्वती की पूजा

गणगौर पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से माता पार्वती व भगवान शंकर की पूजा की जाती है। इन्हें ईसर-गौर भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है (ईश्वर-गौरी)। यह कुंवारी और नवविवाहित स्त्रियों का त्योहार है।

gangaur festival

इस तरह करें पूजा
इस दिन भगवान शिव ने पार्वती जी को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। सुहागिनें व्रत धारण से पहले रेणुका (मिट्टी) की गौरी की स्थापना करती है एवं उनका पूजन किया जाता है।

व्रत धारण करने से पूर्व रेणुका गौरी की स्थापना करती हैं। इसके लिए घर के किसी कमरे में एक पवित्र स्थान पर चौबीस अंगुल चौड़ी और चौबीस अंगुल लम्बी वर्गाकार वेदी बनाकर हल्दी, चंदन, कपूर, केसर आदि से उस पर चौक पूरा जाता है। फिर उस पर बालू से गौरी अर्थात पार्वती बनाकर (स्थापना करके) इस स्थापना पर सुहाग की वस्तुएं- कांच की चूड़ियां, महावर, सिन्दूर , रोली, मेंहदी, टीका, बिंदी, कंघा, शीशा, काजल आदि चढ़या जाता है।

गणगौर पर विशेष रूप से मैदा के गुने बनाए जाते हैं। लड़की की शादी के बाद लड़की पहली बार गनगौर अपने मायके में मनाती है और इन गुनों तथा सास के कपड़ो का बायना निकालकर ससुराल में भेजती है। यह विवाह के प्रथम वर्ष में ही होता है, बाद में प्रतिवर्ष गनगौर लड़की अपनी ससुराल में ही मनाती है।

ससुराल में भी वह गनगौर का उद्यापन करती है और अपनी सास को बायना, कपड़े तथा सुहाग का सारा सामान देती है। साथ ही सोलह सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराकर प्रत्येक को सम्पूर्ण श्रृंगार की वस्तुएं और दक्षिण दी जाती है।

गनगौर पूजन के समय स्त्रियों गौरीजी की कथा भी कहती हैं।चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से गौरी का विधिपूर्वक पूजन करके सूहाग की इस सामग्री का अर्पण किया जाता है। फिर भोग लगाने के बाद गौरी जी की कथा कही जाती है। कथा के बाद गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिन्दूर से महिलाएं अपनी मांग भरती हैं। गौरीजी का पूजन दोपहर को होता है। इसके पश्चात केवल एक बार भोजन करके व्रत का पारण किया जाता है। गणगौर का प्रसाद पुरुषों के लिए वर्जित है।

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