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गंगा दशहरा 14 को: जानिए गंगा दशहरा का महत्व और पूजन विधि

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को संवत्सर का मुख कहा गया है। इसलिए इस इस दिन दान और स्नान का ही अधिक महत्व है। वराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, बुधवार के दिन, हस्त नक्षत्र में गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थी। जानिे महत्व, पूजा विधि के बारें में।

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धर्म डेस्क:  हर साल ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस साल गंगा दशहरा 14 जून, मंगलवार को मनाया जा रहा है। स्कंदपुराण के अनुसार इस दिन व्यक्ति को किसी भी पवित्र नदी पर जाकर स्नान, ध्यान तथा दान करना चाहिए। इससे वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है।

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ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को संवत्सर का मुख कहा गया है। इसलिए इस इस दिन दान और स्नान का ही अधिक महत्व है। वराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, बुधवार के दिन, हस्त नक्षत्र में गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थी।

महत्व
पुरणों के अनुसार भगीरथी की तपस्या के बाद जब गंगा माता धरती पर आती हैं उस दिन ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की  दशमी थी। गंगा माता के धरती पर अवतरण के दिन को ही गंगा दशहरा के नाम से पूजा जाना जाने लगा। इस दिन गंगा नदी में खड़े होकर जो गंगा स्तोत्र पढ़ता है वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है। स्कंद पुराण में दशहरा नाम का गंगा स्तोत्र दिया हुआ है।

इस दिन दान-पुण्य करने का अधिक महत्व है। इस दिन 10 वस्तु का दान करना चाहि। 10 अंक का आज अधिक महत्व होता है। इससे आपको अधिक फल की प्राप्ति होगी। इस दिन पूजा-पाठ और स्नान करने से आपके सभी पापों का नाश हो जाता है।  जो कि 10 तरह के पाप होते है। अगर आप गंगा नदीं नही जा पा रहे है तो आप घर के पास किसी नदी या तालाब में गंगा मां का ध्यान करते हुए स्नान कर सकता है। गंगा जी का ध्यान करते हुए षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। इसके बाद इस मंक्ष का जाप करना चाहिए।

''ऊं नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नम:''
इस मंत्र के बाद “ऊं नमो भगवते ऎं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा”

मंत्र का पांच पुष्प अर्पित करते हुए गंगा को धरती पर लाने भगीरथी का नाम मंत्र से पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही गंगा के उत्पत्ति स्थल को भी स्मरण करना चाहिए। गंगा जी की पूजा में सभी वस्तुएं दस प्रकार की होनी चाहिए। जैसे दस प्रकार के फूल, दस गंध, दस दीपक, दस प्रकार का नैवेद्य, दस पान के पत्ते, दस प्रकार के फल होने चाहिए।

अगर आप पूजन के बाद दान देना चाहते है तो दस चीजं का ही दान दें, क्योंकि ये अच्छा माना जाता है, लेकिन जौ और तिल का दान सोलह मुठ्ठी का होना चाहिए। दक्षिणा भी दस ब्राह्मणों को देनी चाहिए। जब गंगा नदी में स्नान करें तब बी दस बार डुबकी लगानी चाहिए।

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