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गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन करने से लगता है कलंक, अशुभ फल से बचाएगा ये मंत्र

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को कलंक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में आज के दिन चंद्र दर्शन निषेध बताया गया है।

कलंक चतुर्थी के दिन करें इस मंत्र का जाप- India TV Hindi Image Source : INSTA/SIMONECAPACE/BAPPAMAJHA_OFFICIAL कलंक चतुर्थी के दिन करें इस मंत्र का जाप

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के साथ ही गणेश उत्सव की शुरुआत हो जाती है। ये उत्सव आज 22 अगस्त, भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होकर 1 सितम्बर, भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तक मनाया जायेगा। गणेश उत्सव के पहले दिन श्री गणेश जी की घर में स्थापना की जाती है और पूरे दस दिनों तक उनकी विधि-विधान से पूजा करके आखिरी दिन गणेश विसर्जन किया जाता है।  कई लोग एक दिन, तीन दिन, पांच दिन या सात दिनों के लिये भी गणपति जी को घर पर लाते हैं और उसके बाद उनका विसर्जन करते हैं। श्री गणेश भगवान की कृपा से इन दस दिनों के दौरान आपकी मनचाही सभी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। गणपति जी आपकी हर समस्या का समाधान निकालने के लिये आपके साथ ही मौजूद होंगे। इसके साथ ही इस दिन कलंक चतुर्थी मनाई जाती हैं। 

इस कारण लगता है कलंक

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को कलंक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में आज के दिन चंद्र दर्शन निषेध बताया गया है। दरअसल चंद्रमा ने अहंकार के चलते  गणेशजी का अपमान किया था जिससे क्रोधित होकर गणेशजी ने चंद्रमा को श्राप दिया कि उनका का क्षय हो जाएगा और चंद्रमा को  इस दिन जो भी  देखेगा उसे झूठा कलंक लगेगा। इसी श्राप के कारण आज के दिन चंद्रमा का दर्शन करना कलंक लगाने वाला होता है। कहीं-कहीं इस दिन लोग चांद की ओर पत्थर उछालते हैं।  इसलिए इसे पत्थर चौथ के नाम से भी जाना जाता है। 

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चांद के अशुभ फल से बचने के लिए अपनाएं ये उपाय

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार यदि दर्शन करना आवश्यक हो तो  हाथ में फल, मिठाई या दही लेकर चांद के दर्शन करना चाहिए। इससे चंद्र दर्शन का अशुभ फल नहीं मिलता है ना ही कलंक लगता है। चंद्रमा का दर्शन दही हाथ में लेकर करें तो इस मंत्र से चंद्रमा को प्रणाम करें।

दधि-शंख-तुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम् । नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।

फल मिठाई लेकर चंद्रमा के दर्शन इस मंत्र से करें-

सिहः प्रसेनमवधीत सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः ॥

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