Dussehra 2021: दशहरे के दिन क्यों है शमी और अपराजिता की पूजा का प्रावधान, जानिए
दशहरा के दिन शमी और देवी अपराजिता की पूजा जरूर करना चाहिए। इसके साथ ही नीलकंठ के दर्शन करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में खुशहाली बनी रहती है और धनलाभ होता है।
आज यानी 15 अक्टूबर को जीत का प्रतीक दशहरा का त्योहार मनाया जा रहा है। दशमी तिथि शाम 6 बजकर 2 मिनट तक रहेगी। इसके साथ ही पूरा दिन और पूरी रात समस्त कार्यों में सफलता दिलाने वाला रवि योग रहेगा। पुराणों के अनुसार रावण पर भगवान श्री राम की जीत के उपलक्ष्य में विजयदशमी का ये त्योहार मनाया जाता है। इस दिन कोई भी काम करने से उसमें जीत सुनिश्चित होती है।
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार दशहरा के दिन शमी और देवी अपराजिता की पूजा जरूर करना चाहिए। इसके साथ ही नीलकंठ के दर्शन करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में खुशहाली बनी रहती है और धनलाभ होता है।
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ऐसे करें अपराजिता की पूजाविजयदशमी के दिन अपराजिता की पूजा करने का विधान है। अपराजिता की पूजा से सालभर तक कार्यों में जीत हासिल होती है और किसी भी काम में रूकावट नहीं आती। इस दिन दोपहर बाद घर के ईशान कोण, यानी उत्तर-पूर्व दिशा को अच्छे से साफ करके, उसे गोबर से लीपकर, उसके ऊपर चंदन से आठ पत्तियों वाला कमल का फूल बनाना चाहिए और संकल्प करना चाहिए-
मम सकुटुम्बस्य क्षेम सिद्धयर्थे अपराजिता पूजनं करिष्ये”
अगर आप ये मंत्र न पढ़ पाएं तो आपको इस प्रकार कहना चाहिए कि हे देवी ! मैं अपने परिवार के साथ अपने कार्य को सिद्ध करने के लिये और विजय पाने के लिये आपकी पूजा कर रहा हूं। इस प्रकार कहकर उस कमल की आकृति के बीच में अपराजिता का पौधा रखना चाहिए।
ये तो हुई साधारण मनुष्य की बात जबकि राजाओं को इस प्रकार संकल्प लेना चाहिए
“मम सकुटुम्बस्य यात्रायां विजय सिद्धयर्थम्”
अब लोकतंत्र के समय में राजा तो नहीं होते, लेकिन देश के मुखिया प्रधानमंत्री होते हैं, राज्य के मुखिया मुख्यमंत्री होते हैं, साथ ही मंत्री होते हैं और उच्चाधिकारी होते
हैं, जो अपने देश की, अपने राज्य की और अपने-अपने कार्यक्षेत्र की देखरेख करते हैं। लिहाजा आज देश के प्रधानमंत्री को, मुख्यमंत्री को, मंत्रियों को और उच्चाधिकारियों को अपनी प्रजा के लिये, हर मोर्चे पर अपने देश की विजय के लिये और देश की तरक्की के लिये अपराजिता की पूजा करनी चाहिए और ये संकल्प
लेना चाहिए - 'मम सकुटुम्बस्य यात्रायां विजय सिद्धयर्थमपरा'
इसके बाद अपराजिता की दाहिनी ओर जया और बायीं ओर विजया शक्ति का आह्वाहन करना चाहिए। इसके बाद तीनों को प्रणाम करते हुए क्रमशः ये कहना चाहिए- अपराजितायै नमः, जयायै नमः, विजयायै नमः
इस तरह मंत्र कहते हुए उनकी षोडशोपचार, यानी 16 उपचारों के साथ पूजा करनी चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए- 'हे देवी, यथाशक्ति जो पूजा मैंने अपनी रक्षा के लिये की है, उसे स्वीकार कीजिये।' इस प्रकार पूजा के बाद देवी मां से अपने स्थान पर वापस जाने का आग्रह करें।
निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु में शमी पूजा के बारे में विस्तार से दिया गया है। इसके लिये गांव की सीमा पर जाकर उत्तर-पूर्व दिशा में शमी के पौधे की पूजा करनी चाहिए। सबसे पहले शमी की जड़ में लोटे से साफ जल चढ़ाना चाहिए और घी का दीपक जलाना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को सालभर तक यात्राओं में लाभ मिलता है, यात्रा में किसी प्रकार की बाधा नहीं आती और काम में सफलता मिलती है।
शमी की पूजा के बाद सीमा उल्लंघन करना चाहिए यानी अपने गांव या शहर की सीमा को लांघकर बाहर जाना चाहिये। इससे जीवन में उत्साह और प्रगति बनी रहती है।
अपराजिता और शमी पूजा के अलावा आज खंजन, यानी नीलकंठ पक्षी के दर्शन करना बड़ा ही शुभ माना जाता है। दशहरे के दिन इसका दर्शन करना अपनी किस्मत के दरवाजे खोलने के समान है। अगर आज आपको कहीं भी नीलकंठ के दर्शन हो जाये तो उसे देखते हुए कहना चाहिए- खंजन पक्षी, तुम इस पृथ्वी पर आये हो, तुम्हारा गला नीला एवं शुभ्र है, तुम सभी इच्छाओं को देने वाले हो, तुम्हें नमस्कार है।
आम के बौर को सूंघने की परंपराशास्त्रों के अनुसार दशहरा के दिन आम के बौर को सूंघने की परंपरा है। इससे व्यक्ति का मानसिक संतुलन अच्छा रहता है, मन प्रसन्न रहता है और डिप्रेशन आदि से
छुटकारा मिलता है, साथ ही विजयदशमी के दिन धान की हरी, अनपकी बालियों को घर के द्वार पर टांगने और गेहूं की बालियों को घर के पुरुषों के कानों पर टांगने का या पगड़ी पर रखने का चलन है । माना जाता है कि ऐसा करने से घर में पैसा आता है।
विजयदशमी अपने काम से संबंधित शस्त्रों की पूजा करने का भी विधान है। इससे जरूरत पड़ने पर ये आपके काम आते हैं। माना जाता है कि दशहरा के दिन अपने घर या फिर मंदिर में लाल पताका भी लगानी चाहिए। ये पताका जीत का प्रतीक होती है। इससे आपकी जीत हमेशा कायम रहेगी।