दशहरा के दिन अपराजिता और शमी की पूजा का है विशेष लाभ, जानें पूजा विधि
आज के दिन जीत का प्रतीक ‘विजयदशमी’ का त्योहार मनाया जायेगा। जानें आचार्य इंदु प्रकाश से अपराजिता और शमी की पूजा करने की विधि।
आज के दिन जीत का प्रतीक ‘विजयदशमी’ का त्योहार मनाया जायेगा। पुराणों के अनुसार रावण पर भगवान श्री राम की जीत के उपलक्ष्य में विजयदशमी का ये त्योहार मनाया जाता है। आज के दिन अपना कोई खास काम करने से आपकी जीत सुनिश्चित होती है । आपको बता दूं कि आज के दिन दोपहर 01 बजकर 42 मिनट से लेकर 02 बजकर 29 मिनट तक विजय मुहूर्त रहेगा । इस बीच आप कोई भी कार्य करके अपनी जीत सुनिश्चित कर सकते हैं। जानें आचार्य इंदु प्रकाश से पूजा विधि।
ऐसे करें अपराजिता की पूजा
विजयदशमी के दिन अपराजिता की पूजा करने का विधान है। आज के दिन अपराजिता की पूजा से सालभर तक कार्यों में जीत हासिल होती है और किसी भी काम में रूकावट नहीं आती। आज के दिन दोपहर बाद घर के ईशान कोण, यानी उत्तर-पूर्व दिशा को अच्छे से साफ करके, उसे गोबर से लीपकर, उसके ऊपर चंदन से आठ पत्तियों वाला कमल का फूल बनाना चाहिए और संकल्प करना चाहिए-
“मम सकुटुम्बस्य क्षेम सिद्धयर्थे अपराजिता पूजनं करिष्ये”
अगर आप ये मंत्र न पढ़ पायें, तो आपको इस प्रकार कहना चाहिए कि हे देवी ! मैं अपने परिवार के साथ अपने कार्य को सिद्ध करने के लिये और विजय पाने के लिये आपकी पूजा कर रहा हूं। इस प्रकार कहकर उस कमल की आकृति के बीच में अपराजिता का पौधा रखना चाहिए। ये तो हुई साधारण मनुष्य की बात, जबकि राजाओं को इस प्रकार संकल्प लेना चाहिए
“मम सकुटुम्बस्य यात्रायां विजय सिद्धयर्थम्”
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अब लोकतंत्र के समय में राजा तो नहीं होते, लेकिन देश के मुखिया प्रधानमंत्री होते हैं, राज्य के मुखिया मुख्यमंत्री होते हैं, साथ ही मंत्री होते हैं और उच्चाधिकारी होते हैं, जो अपने देश की, अपने राज्य की और अपने-अपने कार्यक्षेत्र की देखरेख करते हैं। अतः आज के दिन देश के प्रधानमंत्री को, मुख्यमंत्री को, मंत्रियों को और उच्चाधिकारियों को अपनी प्रजा के लिये, हर मोर्चे पर अपने देश की विजय के लिये और देश की तरक्की के लिये अपराजिता की पूजा करनी चाहिए और ये संकल्प लेना चाहिए -
“मम सकुटुम्बस्य यात्रायां विजय सिद्धयर्थमपरा”
इसके बाद अपराजिता की दाहिनी ओर जया और बायीं ओर विजया शक्ति का आह्वाहन करना चाहिए। इसके बाद तीनों को प्रणाम करते हुए क्रमशः ये कहना चाहिए-‘अपराजितायै नमः,‘जयायै नमः, ‘विजयायै नमः’। इस तरह मंत्र कहते हुए उनकी षोडशोपचार, यानी 16 उपचारों के साथ पूजा करनी चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए- ‘हे
देवी, यथाशक्ति जो पूजा मैंने अपनी रक्षा के लिये की है, उसे स्वीकार कीजिए।' इस प्रकार देवी मां से अपने स्थान पर वापस जाने का आग्रह करें। जबकि राजा के संदर्भ में धर्मशास्त्र का इतिहास चतुर्थ भाग के पृष्ठ 71 पर अलग तरह से प्रार्थना बतायी गयी है। वर्तमान समय में राजा की जगह प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और अन्य उच्चाधिकारी ये प्रार्थना कर सकते हैं -‘वह अपराजिता जिसने कण्ठहार पहन रखा है, जिसने चमकदार सोने की मेखला, यानी करधनी पहन रखी है, जो अच्छा करने की इच्छा रखती है, मुझे विजय दे।‘... इस प्रकार प्रार्थना के बाद देवी का विसर्जन करना चाहिए।
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ऐसे करें शमी की पूजा
निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु में शमी पूजा के बारे में विस्तार से दिया गया है। इसके लिये गांव की सीमा पर जाकर उत्तर-पूर्व दिशा में शमी के पौधे की पूजा करनी चाहिए। सबसे पहले शमी की जड़ में लोटे से साफ जल चढ़ाना चाहिए और घी का दीपक जलाना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को सालभर तक यात्राओं में लाभ मिलता है, यात्रा में किसी प्रकार की बाधा नहीं आती और काम में सफलता मिलती है। शमी की पूजा के बाद सीमा उल्लंघन करना चाहिए, यानी अपने गांव या शहर की सीमा को लांघकर बाहर जाना चाहिये। इससे जीवन में उत्साह और प्रगति बनी रहती है।