नई दिल्ली: गांधारी गांधार के 'सुबल' नामक राजा की बेटी थीं। गांधार की राजकुमारी होने के कारण उनका नाम गांधारी पड़ा। यह हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र की पत्नी और दुर्योधन आदि कौरवों की माता थीं। गांधारी की भगवान शिव में विशेष आस्था थी, और ये शिव की परम भक्त थीं। वह एक आदर्श नारी सिद्ध हुई थीं। लेकिन यह बहुत कम लोगों को मालूम है कि गांधारी की दो शादी हुई थी।
परिचय
जब गांधारी का विवाह नेत्रहीन धृतराष्ट्र से हुआ, तभी से गांधारी ने भी अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। इन्होंने सोचा कि जब मेरे पति ही नेत्रहीन हैं, तब मुझे संसार को देखने का अधिकार नहीं है। लेकिन शकुनि नहीं चाहता था कि उसकी बहन की शादी एक दृष्टिहीन से हो। क्योंकि नेत्रहीन धृतराष्ट्र के साथ गांधारी के विवाह का प्रस्ताव लेकर जब गंगापुत्र भीष्म सुबल के पास पहुँचे, तब शकुनि ने इसे अपने पिता तथा स्वयं का बहुत बड़ा अपमान माना। शकुनि की इच्छा के विरुद्ध गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से करवाया गया। विवाह के उपरांत जब धृतराष्ट्र को गांधारी की विधवा वाली बात का पता चला तो वह आगबबूला हो गया और पूरे गांधार राज्य को समाप्त कर दिया केवल शकुनि को ही जीवित रखा गया।
धृतराष्ट्र से पहले भी हुआ था गांधारी का विवाह
गांधारी की जन्म के समय जब उनकी कुंडली बनाई गई तो उनकी कुंड़ली में एक समस्या सामने आई। पंड़ितों ने गांधारी के पिता को कहा कि गांदारी के दो विवाह होंगे उसके पहले पतिकी मौत निश्चित है। इस समस्या से निकलने के लिए गांधारी का विवाह एक बकरे से करवाकर उसकी बलि दे दी। यह करने के बाद गांधारी की कुंड़ली से विधवा होने का दोष हट गया। बाद में गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से करवाया गया। विवाह से पूर्व गांधारी को नहीं पता था कि धृतराष्ट्र दृष्टिहीन है लेकिन अपने माता-पिता की लाज रखने के लिए उसने शादी कर ली।
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