आखिर क्यों 4 माह के लिए देवता चले जाते हैं निद्रा में, जानिए ये रोचक कथा
आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक के चार महीनों को चातुर्मास के नाम से जाना जाता है। जानिए क्या है देवताओं के निद्रा जानें की कथा।
देवशयनी एकादशी 2018: आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि और सोमवार का दिन है। आज देवशयनी एकादशी है। इसे योगनिद्रा, हरिशयनी या पद्मनाभा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। आज से भगवान श्री विष्णु विश्राम के लिये क्षीर सागर में चले जायेंगे और पूरे चार महीनों तक वहीं पर रहेंगे। भगवान श्री हरि के शयनकाल के इन चार महीनों को चातुर्मास के नाम से जाना जाता है
आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक के चार महीनों को चातुर्मास के नाम से जाना जाता है। इन चार महीनों में श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास शामिल हैं। चातुर्मास के आरंभ होने के साथ ही आज के बाद से, यानी कल से अगले चार महीनों तक शादी-ब्याह आदि सभी शुभ कार्य बंद हो जायेंगे। शादी-ब्याह आदि सभी शुभ कार्य अब सीधे चार महीनों बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवोत्थानी या प्रबोधनी एकादशी से शुरू होंगे। जो कि 19 नवम्बर, 2018 है। जानिए आखिर क्यों देवता 4 माह की करते है निद्रा
इस कारण चले जाते है 4 माह के लिे निद्रा में
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य को मारा गया था। उसी दिन की शुरुआत से लेकर के भगवान विष्णु चार महीने तक क्षीर समुद्र में शयन करते हैं। उसके बाद भगवान कार्तिक शुक्ल एकादशी में वापस जागते हैं। हमारे पुराण के अनुसार यह भी कहा गया है कि भगवान विष्णु ने दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे।
भगवान ने पहले पग में पूरी धरती, आकाश और सभी दिशाओं को ढंक लिया। तभी बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर विष्णु जी का पग रखने को कहा। इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें।
बलि के बंधन में बंधा देख लक्ष्मी ने बलि को भाई बना लिया और भगवान से बलि को वचन से मुक्त करने की जिद की। तब इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वर का पालन करते हुए तीनों देवता 4-4 महीने सुतल में निवास करते हैं। विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक निवास करते हैं।