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शाप से मुक्ति के लिए राजकुमारी सुकन्या ने रखा व्रत
बहुत समय पहले शर्याति नाम के एक राजा थे। उनकी अनेक स्त्रियां थी, लेकिन उनकी एकमात्र संतान सुकन्या नामक पुत्री थी। राजा को अपनी पुत्री बहुत प्रिय थी। एक बार राजा शर्याति जंगल में शिकार खेलने गए। उनके साथ सुकन्या भी गईं। जंगल में च्यवन ऋषि तपस्या कर रहे थे। ऋषि तपस्या में इतने लीन थे कि उनके शरीर पर दीमक लग गई थी। बांबी से उनकी आंखें जुगनू की तरह चमक रही थीं।
सुकन्या ने कौतुहलवश उन बांबी के दोनों छिद्रों में जहां ऋषि की आंखें थी, तिनके डाल दिए, जिससे मुनि की आंखें फूट गईं। क्रोधित होकर च्यवनऋषि ने श्राप दिया जिससे राजा शर्याति के सैनिकों का मल-मूत्र निकलना बंद हो गया। सैनिक दर्द से तपड़ने लगे। जब यह बात राजा शर्याति को मालूम हुई तो वह सुकन्या को लेकर च्यवनमुनि के पास क्षमा मांगने पहुंचे। राजा ने अपनी पुत्री के अपराध को देखते हुए उसे ऋषि को ही समर्पित कर दिया।
सुकन्या ऋषि च्यवन के पास रहकर ही उनकी सेवा करने लगी। एक दिन कार्तिक मास में सुकन्या जल लाने के लिए पुष्करिणी के समीप गई। वहां उसे एक नागकन्या मिली। नागकन्या ने सुकन्या को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य की उपासना एवं व्रत करने को कहा। सुकन्या ने पूरी निष्ठा से छठ का व्रत किया जिसके प्रभाव से च्यवन मुनि की आंखों की ज्योति पुन: लौट आई।
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