आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भले ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार इस चीज पर आधारित है जो लोग अपने वर्ग को छोड़कर दूसरे वर्ग में चले जाते हैं उनका खात्मा होना निश्चित है।
'जो मनुष्य अपने वर्ग के लोगों को छोड़कर दूसरे वर्ग का सहारा लेता है, वह उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे अधर्म का आश्रय लेने वाला राजा।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि मनुष्य को हमेशा अपने वर्ग के लोगों के साथ रहना चाहिए। कई लोग ऐसे होते हैं कि वो अपने से ऊपर के क्लास में जाने को लेकर इतने ज्यादा उत्साहित रहते हैं कि वो अपने क्लास के लोगों को भूल ही जाते हैं। ऐसा करके वो केवल अपना ही बुरा करते हैं।
असल जिंदगी में कई बार होता है कि लोग अपने वर्ग से ज्यादा दूसरे वर्ग को पसंद करते हैं। यहां पर वर्ग का मतलब क्लास है। कई बार ऐसा अपने आप हो जाता है तो कई बार लोग अपने से ऊपर वाले वर्ग के लोगों से जुड़ने का कनेक्शन अपनी शान से करते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि अगर वो अपने से ऊपर वाले क्लास के लोगों के साथ मेल जोल बढ़ाएंगे तो उससे उनकी ख्याति बढ़ेगी। उन्हें ये भी लगता है कि अपने से ऊपर वाले क्लास के व्यक्तियों के साथ रहने से उनके मान सम्मान में भी इजाफा होगा।
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ऐसा करते वक्त सबसे पहले वो उन लोगों से किनारा करते हैं जो उनके वर्ग के होते हैं। ऐसे लोग अपने क्लास के लोगों की अनदेखी करना शुरू कर देते हैं। उन्हें लगता है कि अगर उनका मेलजोल अपने से ऊपर के क्लास के लोगों के साथ बढ़ गया है तो अपने क्लास के लोगों से वास्ता रखने का क्या मतलब है।
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ऐसे लोगों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए किसी भी व्यक्ति को अपनी जड़ें नहीं भूलनी चाहिए। ऐसे व्यक्तियों का वैसा ही हाल होता है जैसा कि अधर्म के रास्ते पर चलने वाले राजा का होता है। अधर्म पर चलने वाले राजा के मान सम्मान में तो कमी होती है साथ ही उसका विनाश भी जल्दी हो जाता है। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जो मनुष्य अपने वर्ग के लोगों को छोड़कर दूसरे वर्ग का सहारा लेता है, वह उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे अधर्म का आश्रय लेने वाला राजा।
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