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Hindi News लाइफस्टाइल जीवन मंत्र मूर्ख के समान है ऐसा मनुष्य जो अपनी इस एक चीज को पहचानने में है फेल

मूर्ख के समान है ऐसा मनुष्य जो अपनी इस एक चीज को पहचानने में है फेल

खुशहाल जिंदगी के लिए आचार्य चाणक्य ने कई नीतियां बताई हैं। अगर आप भी अपनी जिंदगी में सुख और शांति चाहते हैं तो चाणक्य के इन सुविचारों को अपने जीवन में जरूर उतारिए।

Chanakya Niti-चाणक्य नीति- India TV Hindi Image Source : INDIA TV Chanakya Niti-चाणक्य नीति

आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भले ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार कर्म पर आधारित है। 

'जो व्यक्ति अपने कर्म नहीं पहचानता है वो आंखें होते हुए भी अंधे मनुष्य के समान है।' आचार्य चाणक्य 

आचार्य चाणक्य का ये कथन कर्म पर आधारित है। इसमें आचार्य ने कहा है कि मनुष्य को अपने कर्मों का ज्ञान जरूर होना चाहिए। जब भी मनुष्य किसी काम को करता है तो उसे उस वक्त ये पता होता है कि उसका ये कर्म सही है या फिर नहीं। इस बात की जानकारी हर किसी को होती है। कई बार ऐसा होता है कि मनुष्य कर्म तो कर जाता है लेकिन उसे इस बात की जानकारी या फिर अहसास ही नहीं होता कि जो उसने किया है वो सही है या फिर गलत। 

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असल जिंदगी में मनुष्य का सामना कई तरह के लोगों से होता है। कुछ लोग अच्छे होते हैं तो कुछ लोगों के कर्म इतने खराब होते हैं कि वो क्या उनके बारे में दूसरे लोग भी अच्छे से जानते हैं। हालांकि कई बार जब आप उनसे इस बारे में पूछेंगे तो वो आपसे यही कहते दिखाई देंगे पता नहीं मैंने सही किया या फिर नहीं। 

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आचार्य का कहना है कि किसी भी कर्म को जब मनुष्य अंजाम तक पहुंचाता है तो उसके बारे में उसे पूरी जानकारी होती है। वो इस बात को अच्छे से जानता है कि किस कर्म का क्या दूरगामी नतीजा होगा। कई बार ये दूरगामी परिणाम दूसरों के लिए तो कई बार खुद के लिए भी घातक होते हैं। इसलिए मनुष्य को किसी भी कर्म को करते वक्त उसके फायदे और नुकसान दोनों के बारे में सोच लेना चाहिए। 

अगर आप ये कहते हैं कि आपको अपने कर्मों के बारे में जानकारी नहीं तो आप उस अंधे के समान है जिसकी आंखें तो हैं लेकिन सिर्फ नाम की। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जो व्यक्ति अपने कर्म नहीं पहचानता है वो आंखें होते हुए भी अंधे मनुष्य के समान है।

 

 

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