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Hindi News लाइफस्टाइल जीवन मंत्र इन तीन परिस्थितियों में मनुष्य भूल कर भी ना ले फैसला, हो सकता है जिंदगी भर का पछतावा

इन तीन परिस्थितियों में मनुष्य भूल कर भी ना ले फैसला, हो सकता है जिंदगी भर का पछतावा

खुशहाल जिंदगी के लिए आचार्य चाणक्य ने कई नीतियां बताई हैं। अगर आप भी अपनी जिंदगी में सुख और शांति चाहते हैं तो चाणक्य के इन सुविचारों को अपने जीवन में जरूर उतारिए।

Chanakya Niti-चाणक्य नीति- India TV Hindi Image Source : INDIA TV Chanakya Niti-चाणक्य नीति

आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार कभी भी इन परिस्थितियों में बात को कहने से पहले सौ बार सोचें।

'जीवन में तीन मंत्र..आनंद में वचन, क्रोध में उत्तर और दुख में निर्णय मत लीजिए।' आचार्य चाणक्य

आचार्य चाणक्य का कहना है कि मनुष्य को कभी भी इन परिस्थितियों में बोलने से पहले सौ बार सोच लेना चाहिए। इन तीन परिस्थितियों में पहली स्थिति है कि जब भी आप बहुत खुश हो तो कभी भी कोई वचन ना दें। कई बार ऐसा होता है कि मनुष्य जब बहुत खुश होता है तो किसी को भी किसी चीज का वचन दे देता है। ये वचन कई बार आपके लिए मुसीबत का कारण बन जाता है। क्योंकि खुशी में दिए गए वचन को देने से पहले मनुष्य एक पल का भी विचार नहीं करता। ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय उसका मन उसके कंट्रोल में नहीं होता। 

मनुष्य को कभी भी इस एक चीज का नहीं करना चाहिए भरोसा, कई बार आपकी कोशिश पलट सकती है सब कुछ

ऐसे में उस समय उसका दिया गया वचन कई बार गले ही हड्डी बन सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार खुश होने पर मनुष्य ऐसी बात का वचन दे देता है जिसे पूरा करना उसके बस की बात ही नहीं होती। 

दूसरी स्थिति क्रोध की है। कभी भी मनुष्य को गुस्से में कोई जवाब नहीं देना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि गुस्से में मनुष्य की सबसे पहले बुद्धि का करना बंद कर देती है। मनुष्य के दिमाग पर गुस्सा इस कदर हावी हो जाता है वो सही और गलत समझ नहीं पाता। ऐसे में अगर आप उस व्यक्ति से कुछ भी पूछेंगे तो वो आपको कुछ भी कह सकता है। इसलिए जब भी कोई व्यक्ति गुस्से में हो तो उससे उत्तर ना मांगें।

तीसरी स्थिति निर्णय की है। जब कोई भी मनुष्य दुख में होता है तो उसे कोई भी फैसला नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसी स्थिति में मनुष्य कोई भी फैसला ले सकता है। हो सकता है दुख में लिया गया फैसला खुद उसके या फिर उसके परिवार के लिए मुसीबत लेकर आए। इसलिए कभी भी दुख में मनुष्य को कोई भी फैसला नहीं लेना चाहिए। 

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