मनुष्य के जीवन में दुखों का कारण हैं उसके कर्मों का फल
खुशहाल जिंदगी के लिए आचार्य चाणक्य ने कई नीतियां बताई हैं। अगर आप भी अपनी जिंदगी में सुख और शांति चाहते हैं तो चाणक्य के इन सुविचारों को अपने जीवन में जरूर उतारिए।
आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार आज के समय में भी प्रासांगिक हैं। अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में सफलता चाहता है तो उसे इन विचारों को जीवन में उतारना होगा। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार मनुष्य जीवन में दुख को खुद न्यौता देता है इस पर आधारित है।
'मनुष्य स्वयं ही अपने कर्मों द्वारा जीवन में दुख को आमंत्रित करता है।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य का कहना है कि मनुष्य अपने जीवन में सुख और दुख दोनों को ही अपने कर्मों द्वारा जीवन में आमंत्रित करता है। जब भी किसी मनुष्य पर दुख आता है तो वो हमेशा यही कहता हुआ दिखाई देता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। वो इस बात को भूल जाता है कि आप अपने जीवन में जो भी भोगेंगे वो आपके कर्मों का ही नतीजा होगा। लेकिन ये बात भी सही है कि सुख और दुख जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। अगर किसी के जीवन में दुख आया है तो कुछ वक्त बाद सुख का आना भी तय है।
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हर किसी को एक बात याद रखनी चाहिए। वो बात है कि जिंदगी में कोई भी चीज स्थायी नहीं है। अगर आपके जीवन में दुख की छाया है तो सुख भी जरूर आएगा। इसी वजह से आपने कई बार लोगों से ये कहते सुना होगा कि अच्छा हो या फिर बुरा इस जन्म के कर्मों का फल इसी जन्म में मिलता है। हालांकि मनुष्य की ये प्रवृत्ति होती है कि वो दुख के समय यही कहता है कि आखिर उसने जीवन में ऐसा क्या किया जिसकी वजह से उसे ये सब भुगतना पड़ रहा है। लेकिन उस वक्त वो ये भूल जाता है कि वो वही भुगत रहा होता है जो उसने कर्म किए होते हैं।
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दूसरी तरफ अगर मनुष्य की जिंदगी में सुख की लहर आती है तो वो भी उसके कर्मों का ही परिणाम होता है। कुछ लोग सुख की छाया आते ही घमंड करने लगते हैं। ऐसा बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि सुख और दुख सिक्के के दो पहलू होते हैं। अगर जिंदगी में सुख है तो दुख भी आएगा और दुख है तो सुख का आना भी निश्चित है। लेकिन इतना जरूर है कि ये सब मनुष्य के कर्मों पर निर्भर करता है। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि मनुष्य स्वयं ही अपने कर्मों द्वारा जीवन में दुख को आमंत्रित करता है।