सुखी जीवन की परिकल्पना हर मनुष्य की होती है। हर कोई चाहता है कि उसके जीवन पर दुख की छाया बिल्कुल भी न पड़े। उसका हर एक पल सुख से भरा हो। वास्तविक जीवन में मनुष्य की ये कल्पना सिर्फ सोच मात्र है, क्योंकि जीवन में सुख और दुख दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं। अगर जीवन में सुख है तो दुख भी आएगा और दुख है तो सुख का आना भी निश्चित है। इसी सुखी जीवन को लेकर आचार्य चाणक्य ने कुछ नीतियां और अनमोल विचार व्यक्त किए हैं। ये विचार आज के जमाने में भी प्रासांगिक हैं। आचार्य चाणक्य के इसी विचारों में से एक विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार गलती दोहराने को लेकर है।
'दूसरों के लिए अपने वजूद को दांव पर लगाना है मूर्खता'- आचार्य चाणक्य
अपने इस विचार में आचार्य चाणक्य ने विश्वास और वजूद का जिक्र किया है। आचार्य चाणक्य की इन लाइनों का मतलब है कि आप किसी के लिए कितनी भी भलाई क्यों न कर लें। वह तक ही आपका है जब तक आप उसके काम के हैं। जिस दिन आप उसके काम के नहीं रहोगे, उस दिन वो आपकी सभी अच्छाइयों को भूल जाएगा और अपना असली चेहरा दिखा देगा।
विश्वास एक ऐसी चीज है, जिसके टूटने पर व्यक्ति भी टूट जाता है। लोग अपनों पर विश्वास की जगह अंधविश्वास कर बैठते हैं। विश्वास में लोग अपना वजूद तक दांव पर लगा देते हैं। ऐसे में सामने वाले का कुछ नहीं जाता, लेकिन आपका विश्वास टूट गया तो आप बुरी तरह से अंदर से टूट जाते हैं।
चाणक्य कहते हैं कि जिस दिन सामने वाले का काम निकल जाएगा, वो आपका साथ छोड़ देगा। अगर आपने एक छोटी गलती कर दी तो वह आपकी सभी अच्छाइयों को भूल जाएगा।
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