आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भले ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार शत्रु के स्वभाव पर आधारित है।
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'कभी भी अपने शत्रु के अच्छे व्यवहार और उसकी मित्रता पर भरोसा ना करें।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि किसी भी व्यक्ति को अपने शत्रु के बदले हुए स्वभाव पर यकीन नहीं करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि शत्रु में हुए बदलाव आपके लिए और भी घातक हो सकते हैं। कई बार ऐसा होता है मनुष्य शत्रु के व्यवहार और दोस्ती पर यकीन कर लेता है। उसे ऐसा लगता है कि सामने वाला बदल गया है। अगर आपने भी इसी सोच को बढ़ावा दिया तो ये आपके लिए और भी बड़ी मुसीबत खड़ा सकता है।
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दरअसल, कई बार जानी दुश्मन कहे जाने वाले शत्रु के स्वभाव में अचानक ऐसा बदलाव आता है कि उसे देखकर आपको अपनी आंखों पर यकीन नहीं होता। इस तरह के व्यक्ति अपनी बात पर भरोसा दिलाने के लिए साम, दंड और भेद तीनों का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह से वो अपनी बातों के जाल में लोगों को फंसा सकते हैं।
अगर आपका सामना भी इस तरह के शत्रु से पड़ा है तो आप उसकी हर एक चीज पर ध्यान दें। कई बार आंखों का देखा और कानों का सुना दोनों ही झूठे साबित हो जाते हैं। दोनों पर ही जरा सा भी यकीन अगर आपने कर लिया तो वो आपके लिए खतरनाक हो सकता है। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि कभी भी अपने शत्रु के अच्छे व्यवहार और उसकी मित्रता पर भरोसा ना करें।
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